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श्राद्ध और कौवों को ग्रास देने की परंपरा के पीछे छुपे वैज्ञानिक, पारिस्थितिक और आध्यात्मिक कारण :



1. ऋषि-मुनियों ने केवल धार्मिक कारण से नहीं, बल्कि प्राकृतिक संरक्षण को ध्यान में रखते हुए यह परंपरा बनाई।

2. पीपल और बरगद के बीज केवल कौवों की पाचन क्रिया से गुजरने के बाद अंकुरित हो सकते हैं।

3. कौवे इन वृक्षों के प्राकृतिक संवाहक (seed dispersers) हैं, इसलिए उनके अस्तित्व को बचाना आवश्यक है।

4. श्राद्ध के समय कौवों को पौष्टिक भोजन देना उनके प्रजनन काल (भाद्रपद में अंडे और बच्चों का जन्म) से जुड़ा है, जिससे उनकी नई पीढ़ी को आहार मिलता रहे।

5. पीपल और बरगद जैसे वृक्ष ऑक्सीजन और औषधीय गुणों से मानव समाज के लिए अमूल्य हैं।

6. इस तरह श्राद्ध सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण और जीवन चक्र को संतुलित करने की वैज्ञानिक व्यवस्था है।

🔹 महत्वपूर्ण संदेश:
सनातन धर्म की परंपराओं को अंधविश्वास मानकर खारिज करने के बजाय उनके पीछे छिपे वैज्ञानिक और प्रकृति-आधारित कारणों को समझना चाहिए। हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले ही वह व्यवस्था बना दी थी जिसे आज आधुनिक विज्ञान “इकोलॉजिकल बैलेंस” कहता है।

🙏 सच में, श्राद्ध के इस वैज्ञानिक पहलू को जानने के बाद परंपरा और भी अर्थपूर्ण और गर्व करने योग्य लगती है।

🙏 सनातन धर्म की हर परंपरा विज्ञान से भरी हुई है।
पहले समझो – फिर गर्व करो!

हरीश सच्चर
Member of All india Media Association
#SanatanDharma #ScienceOfShraddh #natureprotection

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