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नदी से पहाड़ तक सड़कों का जाल बिछा दिया। खुदगर्जी के चलते हमने, पथ ही "नीर" का मिटा दिया।।

होशियारपुर: 14 सितंबर,2025 (बूटा ठाकुर गढ़शंकर)
इसमें कोई शक नहीं कि गुलामी उपरांत भारत अपने विकासी पथ पर अग्रसर है और नए नए रास्ते तलाश रहा है। जमीं से लेकर आसमां तक, पताल से अंतरिक्ष तक, नदियों से हिमालय की चोटी तक और आजकल तो पूरे गलोबल में भारत का डंका बज रहा है। 2047 तक पूर्ण रूप में विकासी टीचा भी संभव हो सकता है पर मेरा मानना है कि जैसे पूरे भारत वर्ष में सड़कों का जाल बिछाया गया है उसी तर्ज पर जब तक पानी के रास्तों का भी जाल नहीं बिछाया जाता तब तक हम जितनी मर्ज़ी तरक्की कर लें सब पर पानी फिरता रहेगा। पानी की भयंकर आपदा इसकी ताज़ा उदाहरण है। भले ही भारत के कुछ ही गिने चुने राज्य प्रभावित हुए या अक्सर होते रहते हैं। पर यह तबाही कोई मामूली नहीं होती इसका असर पूरे भारत की अर्थ व्यवस्था पर सीधे सीधे पड़ता है। ऐसी त्रासदी हो जाती है कि लोग अपनी जानें तक गवा देते हैं जो बचते हैं उनका तो जैसे द्वारा ही जन्म होता है उसे फिर से पटरी पर आने के लिए वक्त लगता है। विकास के नाम पर देश यदि चार कदम आगे बढ़ता भी है तो दो कदम पीछे भी खिसक जाता है। यदि वाक्य ही देश 2047 के मिशन को पूरा करना चाहता है तो बाढ़ जैसी आपदाओं से निपटने के लिए हमें पानी के रास्तों पर काम करना होगा। नहरों
का जाल बढ़ाना होगा इन्हें मजबूती भी देनी होगी। गांवों और शहरों के पानी की निकासी पर योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा। इसमें कोई शक नहीं कि सड़कों के मामले में तो परिवहन मंत्री गडकरी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं पर अफ़सोस की बात है कि केंद्रीय जल आयोग का काम प्रभावशाली नहीं दिख रहा। केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष अतुल जैन को भी बाढ़ आपदा प्रबंधन से संबंधित परियोजनाओं पर जिम्मेदारी निभानी चाहिए। इसके अलावा नाजायज माइनिंग और जरूरत से ज्यादा माइनिंग पर भी नकेल कसना बहुत जरूरी हो गया है। भारी भरकम टिप्परों की मैन्युफैक्चरिंग पर बैन लगना चाहिए। जो लोग बिना सरकार की अनुमति से कुदरती जल स्रोतों की बगल में अपना घर वा बस्तियां बनाते हैं उन पर रोक होनी चाहिए। जल स्रोतों के आसपास 5 से 10 किलोमीटर तक का एरिया रेड जोन घोषित करना चाहिए। पानी के हर पुराने रास्ते के किनारे मजबूत और साफ सुथरे होने लाजमी किए जाएं और रिहायशी पानी की निकासी को इनसे जोड़ा जाए। तभी भारत के आत्म निर्भर और विकासशील देश होने की कल्पना सार्थक हो सकेगी। वरना विकास का सपना पालना बेमानी होगी।

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