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आपदा के दौर में, सबक बुनने की जरूरत है। केंद्र हो या राज्य, सरकार एक ही चुनने की जरूरत है।।

होशियारपुर: 11 सितंबर,2025 (बूटा ठाकुर गढ़शंकर)
मैं बात अकेले पंजाब की नहीं कर रहा हूं बल्कि भारत के सभी राज्य की करता हूं कि केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकार भी वही चुनी जाए जो जनता द्वारा केंद्र में चुनी गई हो। तभी एक साथ पूरे भारत का विकास संभव हो पाएगा। मौजूदा समय में जिस जिस राज्य में एक ही सरकार है वहां वहां लोगों की समस्याओं पर अंकुश लगा है। मेरा मतलब किसी एक पार्टी को लेकर नहीं है। पार्टी कोई भी हो जिस पर भरोसा किया जा सके, वह सशक्त हो, विशाल हो,साहसी हो राज्यों के विकास के साथ साथ देश का नेतृत्व करने की काबलियत हो। सभी धर्मों वा वर्गों की हितैषी हो। किंतु यह तभी संभव है जब "वन नेशन वन इलेक्शन" का फार्मूला चलन में होगा। इसमें खर्च और समय की बर्बादी से तो बचाव होगा ही पर जनता को भी खास फ़ायदा यह होगा कि पंचायतों से लेकर केंद्र तक किस सरकार को चुनना है। भाजपा, कांग्रेस के अलावा अन्य सभी राजनीतक पार्टियों को भी अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ने का पूरा मौका मिलेगा।
वरना जनता तो ऐसे ही संताप हंडाती रहेगी। उदाहरण आपके समक्ष है कि केंद्र सरकार का कहना है कि आपदाओं के लिए पंजाब सरकार के पास 12 हज़ार करोड़ पहले से ही है जबकि पंजाब सरकार कहती है कि केंद्र सरकार झूठ बोलती है। यदि एक ही सरकार होती तो यह नौबत ही न आती।अब सच्चाई क्या है जनता थोड़ी ना जानती और ना ही कभी जान पाएगी। मैं मानता हूं कि वोटर बहुत पढ़ा लिखा और समझदार है पर क्या फ़ायदा जब आप मौके पर अपनी समझदार का प्रयोग ही न करें? आम जनता समझदार होने के बावजूद भी नेताओं के बहकावे, छल्लावे और निज्जी मुनाफे में फंस जाती है। इससे बाहर निकलना होगा। हमें अपनी और अपने देश की हिफ़ाज़त के लिए और ऑल ओवर विकास के लिए खुद को बदलना होगा, समय के साथ चलना होगा।
अब बात करें 1600 करोड़ की तो मेरा साफ़ मानना है कि यदि यह राशी 16000 करोड़ भी होती तब भी आलोचना संभव होती क्योंकि विरोधी नेता जो ठहरे, हालांकि इस आपदा के लिए केंद्र सरकार की तरफ़ से यह कोई आखरी मदद नहीं है आगे भी उम्मीद है पर नफरती वर्ग का जहर उगलना कभी शायद ही रुक पाए।
हां यदि सरकारें एक ही होती तो फिर पैसे का शायद ही तोल मोल किया जाता और शायद जहर भी नहीं उगला जाता। हमें ऐसे जहर से बचने की जरूरत है। आखिर में यह बात जरूर कहूंगा कि हम लोग नेताओं को पालने में लगे हुए हैं, खुद को नहीं।

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