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कुसमी के शिव मंदिर से गणेश चतुर्थी का विसर्जन पूरे हर्षोल्लास और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया गया।

बलरामपुर जिला संवाददाता सुहैल आलम भोलू

गणपति बप्पा की मूर्ति को बस स्टैंड और दुर्गा चौक के रास्ते राजा बांध तक ले जाया गया, जहां विधि-विधान से उनका विसर्जन किया गया। इस दौरान मिठाई बांटी गई, बच्चों ने झंडे लहराए, और भक्तों ने "गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" के जयकारे लगाए।

गणेश चतुर्थी की पारंपरिक विशेषताएं:
1. *मूर्ति स्थापना:*
- गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होती है।
- भक्त गणेश जी की मूर्ति को घर या पंडाल में स्थापित करते हैं। पूजा स्थल को लाल या पीले कपड़े से सजाया जाता है।

2. *पूजा-अर्चना:*
- बप्पा को मोदक, लड्डू, दूर्वा और लाल फूल चढ़ाए जाते हैं।
- गणेश चालीसा और मंत्रों का पाठ किया जाता है, जैसे *"ॐ गं गणपतये नमः"*।

3. *व्रत और संकल्प:*
- भक्त व्रत रखते हैं और गणपति से सुख, समृद्धि और विघ्नों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।

4. *विसर्जन:*
- अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन किया जाता है।
- गणेश जी को गाजे-बाजे, ढोल-नगाड़ों और नृत्य के साथ विदाई दी जाती है।
- यह प्रकृति और जल को महत्व देने की परंपरा को भी दर्शाता है।

5. *भाईचारा और उत्सव:*
- मिठाई बांटने, पानी और फल की व्यवस्था करने से समाज में एकता और सहयोग का संदेश फैलता है।
- यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

धार्मिक महत्व:
गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म में बुद्धि, समृद्धि और शुभता का प्रतीक है। भगवान गणेश को प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता माना गया है। उनका विसर्जन यह दर्शाता है कि जीवन में हर शुरुआत का अंत होता है, लेकिन हर अंत एक नई शुरुआत का संकेत देता है।

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