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काली दास कविता - दोहा रूप में

🌿✨ कालिदास कथा – दोहा रूप ✨🌿

1️⃣
ज्ञान सजाता जीवन को, घमण्ड इसे हर ले,
विद्या का दीपक भीतर से, अहंकार ही कर दे।

2️⃣
कालिदास भी भूल गए, मान-प्रतिष्ठा चाह,
माँ ने उनको समझाया, सत्य दिखाया कहा मिलाओ थाह।

3️⃣
प्यासे थे वन-पथ पर, माँ से पानी माँगा,
माता बोली परिचय दो, सत्य बताओ आगे।

4️⃣
पथिक कहे तो सूरज-चंदा, चलते हैं कभी रुकते नहीं,
मेहमान वही धन-यौवन है, टिकते नहीं जग में कहीं।

5️⃣
सहनशील धरती-तरु हैं, सबका बोझ उठाते,
पत्थर खाकर भी सदा, हमें मीठे फल दे जाते।

6️⃣
हठ स्वरूप नख-केश ही, काटो लौटें नित्य,
सच कह दो ब्राह्मण कौन, क्यों कर रहे अनित्य।

7️⃣
मूर्ख वही दरबार में, बोले सदा असत्य अनित्य,
राजा अयोग्य राज्य करे, यह है जग का चित्र।

8️⃣
झुक कालिदास चरण गिरे, अब ना कुछ कह पाए,
अहंकार की माया ऐसी की, लज्जा भी शरमा जाए।

9️⃣
माँ सरस्वती हुई प्रकट , तोड़ा उनका अभिमान,
सीख दिया कि विनम्रता, ज्ञान विद्या का है प्राण।

🔟
कहा शिक्षा का मूल है, नम्र बने मनुजाय,
अहंकार से ज्ञान भी, मिट जाता जग छाय।

1️⃣1️⃣
विद्या का श्रृंगार वही, जब विनम्रता संग,
अहंकार के युद्ध में, सत्य करे ही जंग।

1️⃣2️⃣
अन्न के कण मत खोइए, जीवन देता दान,
आनंद क्षण मत गँवाइए, सुख का यही विधान।

1️⃣3️⃣
ज्ञान बिना जो दंभ है, वो पतन कर जाए,
विनय से ही विद्या का, मंगल फल मिल पाए।

1️⃣4️⃣
कालिदास ने तब किया, माता को प्रणाम,
जीवन पथ पर साथ है, सदा विनय का नाम।

1️⃣5️⃣
शिक्षा यही अमूल्य धन है, रखो सदा संभार,
अहंकार से दूर रहो, यही सच्चा आचार विचार।

---

🌸 निष्कर्ष शिक्षा 🌸
विद्या तभी प्रकाश है, जब नम्रता मन हो,
अहंकार में डूबकर, सब पतन मगन हो।

कवि 🌿✍️ सुरेश पटेल ✍️🌿
दिनांक --- 06/09/2025

📌 डिस्क्लेमर :

"यह रचना पूरी तरह से मौलिक है और केवल साहित्यिक एवं प्रेरणादायक उद्देश्य से लिखी गई है। इसका किसी भी राजनीतिक, धार्मिक अथवा व्यक्तिगत विचारधारा से कोई संबंध नहीं है।"

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