
श्रीमद्भागवत कथा का छठवां दिन : श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह प्रसंग सुन भाव-विभोर हुए भक्तजन
खीरी प्रयागराज।
ग्राम इटवा में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन का आयोजन भक्ति और श्रद्धा के अद्भुत वातावरण में संपन्न हुआ। व्यासपीठ पर विराजमान आचार्य श्री आशुतोष पाण्डेय जी महाराज ने इस दिन भगवान श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह के पावन प्रसंग का संगीतमय और भावपूर्ण वर्णन किया।
आचार्य श्री ने कथा में रास पंच अध्याय का महात्म्य बताते हुए कहा कि “भागवत के पंच गीत ही उसके पंच प्राण हैं। जो भी भक्त भावपूर्वक इन गीतों का गायन करता है, उसे वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है और वह भवसागर से पार हो जाता है।”
कथा प्रवाह में भगवान श्रीकृष्ण का मथुरा प्रस्थान, कंस वध, महर्षि संदीपनी आश्रम में विद्याग्रहण, कालयवन का वध, उद्धव-गोपी संवाद, गोपियों को गुरु रूप में मानने का प्रसंग, द्वारका की स्थापना एवं अंत में रुक्मिणी विवाह का दिव्य प्रसंग प्रस्तुत किया गया।
महारास लीला का वर्णन करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जब भगवान ने बांसुरी बजाई तो गोपियां उनके आह्वान पर पहुंचीं और महारास के माध्यम से जीव और ब्रह्म का अद्वैत मिलन हुआ। यही महारास, जीवात्मा और परमात्मा के एकत्व का प्रतीक है।
इस पावन अवसर पर क्षेत्र के अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे, जिनमें लक्ष्मी कान्त मिश्रा, कन्हैया लाल शुक्ला, कामता प्रसाद पांडेय, सता नंद मिश्रा, दुर्गेश कुमार मिश्रा, वाल्मीकि भुर्तिया, शंकराचार्य केसरवानी, कामता नाथ तिवारी, राकेश पाण्डेय एवं चंद्रकांत पांडेय सहित बड़ी संख्या में भक्तगण शामिल हुए।