
कचरे से 'जैविक खाद' बना रहा स्वदेशी केंचुआ, KVK काशीपुर में संरक्षण की पहल
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जीबी पंत कृषि विवि पंतनगर के कृषि विज्ञान केंद्र काशीपुर के वैज्ञानिकों ने एक नई पहल की है। इसके तहत भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) बरेली से विकसित स्वदेशी केंचुआ प्रजाति ‘जय गोपाल’ (पेरियानिक्स सीलेसिस) से वर्मी कंपोस्ट तैयार की जा रही है। उत्तराखंड ने इसके संरक्षण और संवर्धन का बीड़ा उठाया है।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अजय प्रभाकर ने बताया कि किसान अब फसल अवशेष, पशु गोबर और किचन वेस्ट को जलाने के बजाय इसे ब्लैक गोल्ड यानी जैविक खाद में बदल रहे हैं। इस खाद में प्रमुख पोषक तत्वों के साथ-साथ मित्र सूक्ष्मजीव भी पाए जाते हैं, जिससे न केवल जहरमुक्त उत्पादन होता है बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। इस प्रजाति की खासियत यह है कि यह 2 डिग्री से 48 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में सक्रिय रहकर गोबर और कचरे को वर्मी कंपोस्ट में बदल देता है जबकि अन्य प्रजातियां 30–40 डिग्री तक ही जीवित रह पाती हैं। जय गोपाल केंचुए से 25-30 बच्चे पैदा होते हैं।
युवा कर सकते हैं स्वरोजगार
वैज्ञानिक इस प्रजाति से वर्मी कंपोस्ट बनाने का प्रशिक्षण किसानों को दे रहे हैं। उन्हें निशुल्क केंचुए भी उपलब्ध करा रहे हैं। जिन गांवों में गोबर और जैविक कचरे की अधिकता है वहां बेरोजगार युवक-युवतियां केंचुआ पालन व खाद उत्पादन को स्वरोजगार बना सकते हैं।
यूरोपियन और ब्राजीलियन केंचुए कम जीवनकाल के कारण मृदा की उर्वरता घटा देते हैं। ‘जय गोपाल’ प्रजाति से बनी वर्मी कंपोस्ट खेती में शानदार परिणाम दे रही है। इससे दो माह में गोबर और कचरा उच्च गुणवत्ता वाली खाद में बदल जाता है। इस केंचुए में 67 तरह के प्रोटीन और अमीनो एसिड पाए जाते हैं जो मछली व मुर्गी पालन में भी उपयोगी हैं।- डॉ. अजय प्रभाकर, वैज्ञानिक, जीबी पंत कृषि विवि के कृषि विज्ञान केंद्र काशीपुर