
पाकिस्तान का निर्माण एक जटिल ऐतिहासिक प्रक्रिया
पाकिस्तान का निर्माण एक जटिल ऐतिहासिक प्रक्रिया
Satish Kumar Singh
Uttar Pradesh
पाकिस्तान का निर्माण एक जटिल ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम था, जो मुख्य रूप से ब्रिटिश भारत के विभाजन और धार्मिक आधार पर दो अलग-अलग राष्ट्रों की स्थापना के कारण हुआ। निम्नलिखित बिंदुओं में इसकी कहानी संक्षेप में समझी जा सकती है:
औपनिवेशिक भारत और धार्मिक तनाव: 19वीं और 20वीं सदी में, ब्रिटिश शासन के तहत भारत में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सामाजिक और राजनीतिक मतभेद बढ़ने लगे। मुस्लिम बुद्धिजीवियों और नेताओं को यह डर था कि स्वतंत्र भारत में बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के सामने मुस्लिमों का राजनीतिक और सांस्कृतिक अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
मुस्लिम लीग और दो-राष्ट्र सिद्धांत: 1906 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना हुई, जिसने मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा के लिए काम शुरू किया। 1930 में, अल्लामा इकबाल ने एक अलग मुस्लिम राष्ट्र का विचार प्रस्तुत किया। 1940 में, मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने लाहौर प्रस्ताव (पाकिस्तान प्रस्ताव) पारित किया, जिसमें मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों के लिए एक अलग राष्ट्र की मांग की गई। इसे "दो-राष्ट्र सिद्धांत" के रूप में जाना गया, जिसके अनुसार हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग राष्ट्र हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन और विभाजन: 1940 के दशक में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद गहरा गए। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्र करने का फैसला किया।1946 के चुनाव, जिन्हें ब्रिटिश भारत में प्रांतीय विधानसभा चुनाव के रूप में जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। ये चुनाव भारत के विभाजन और स्वतंत्रता से ठीक पहले हुए थे और इनका पाकिस्तान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा। नीचे इन選挙ों का हिंदी में संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
1946 के चुनावों का अवलोकन
पृष्ठभूमि:
1945 में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारत में स्वशासन की दिशा में कदम उठाने शुरू किए।
1946 के प्रांतीय चुनाव भारत में स्वतंत्रता और संभावित विभाजन के लिए राजनीतिक माहौल को समझने के लिए आयोजित किए गए।
ये चुनाव भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 और भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले के आखिरी बड़े चुनाव थे।
मुख्य मुकाबला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के बीच था।
चुनाव का उद्देश्य:
इन चुनावों का लक्ष्य प्रांतीय विधानसभाओं के लिए प्रतिनिधियों का चयन करना था, जो बाद में संविधान सभा के गठन में भूमिका निभाएंगे।
मुस्लिम लीग ने इन चुनावों को दो-राष्ट्र सिद्धांत और एक अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) की मांग के समर्थन के लिए जनमत संग्रह के रूप में देखा।
प्रमुख मुद्दे:
कांग्रेस: एक एकीकृत भारत और सभी समुदायों के लिए समान अधिकारों की वकालत कर रही थी।
मुस्लिम लीग: मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में, मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों के लिए एक अलग राष्ट्र (पाकिस्तान) की मांग कर रही थी।
धार्मिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण बढ़ गया था।
परिणाम:
कुल सीटें: लगभग 1,585 प्रांतीय विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुए, जिनमें से कुछ सीटें सामान्य, मुस्लिम और अन्य समुदायों के लिए आरक्षित थीं।
कांग्रेस की जीत: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सामान्य (हिंदू-प्रधान) सीटों पर भारी जीत हासिल की और 11 में से 8 प्रांतों में सरकार बनाई। उसने कुल 925 सीटें जीतीं।
मुस्लिम लीग की जीत: मुस्लिम लीग ने मुस्लिम-आरक्षित सीटों पर शानदार प्रदर्शन किया, 425 में से 439 मुस्लिम सीटें जीतकर। यह मुस्लिम समुदाय के बीच पाकिस्तान की मांग के लिए व्यापक समर्थन का संकेत था।
क्षेत्रीय परिणाम:
पंजाब: मुस्लिम लीग ने 73 सीटें जीतीं, लेकिन गठबंधन सरकार (यूनियनिस्ट पार्टी, कांग्रेस और अकाली दल) बनी।
बंगाल: मुस्लिम लीग ने 113 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
सिंध और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत (NWFP): मुस्लिम लीग ने मजबूत प्रदर्शन किया, हालांकि NWFP में कांग्रेस ने कुछ समर्थन हासिल किया।
प्रभाव और महत्व:
पाकिस्तान की मांग को बल: मुस्लिम लीग की भारी जीत ने यह साबित कर दिया कि मुस्लिम समुदाय के बीच पाकिस्तान की मांग को व्यापक समर्थन प्राप्त था। इसने दो-राष्ट्र सिद्धांत को और मजबूती दी।
विभाजन की नींव: इन चुनावों ने भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन को अपरिहार्य बना दिया, क्योंकि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता संभव नहीं हो सका।
संविधान सभा का गठन: इन चुनावों के परिणामों ने संविधान सभा के लिए प्रतिनिधियों के चयन में मदद की, जो बाद में भारत और पाकिस्तान के संविधानों को तैयार करने में महत्वपूर्ण रही।
हिंसा और तनाव: चुनावों के बाद सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप 1946 में कई स्थानों पर दंगे हुए, जैसे कोलकाता का डायरेक्ट एक्शन डे।
पाकिस्तान के निर्माण में भूमिका:
1946 के चुनावों ने मुस्लिम लीग को यह विश्वास दिलाया कि उनके पास मुस्लिम समुदाय का जनादेश है। इसने ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस पर दबाव डाला कि वे पाकिस्तान की मांग को गंभीरता से लें।
1947 में, इन चुनावों के परिणामों और बाद की राजनीतिक वार्ताओं के आधार पर, ब्रिटिश सरकार ने भारत को दो देशों—भारत और पाकिस्तान—में विभाजित करने का फैसला किया।
निष्कर्ष:
1946 के चुनाव पाकिस्तान के निर्माण की दिशा में एक निर्णायक कदम थे। इसने मुस्लिम लीग को एक मजबूत मंच प्रदान किया और विभाजन की प्रक्रिया को गति दी। 1947 में, ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया, जिसके तहत भारत को दो स्वतंत्र देशों—भारत और पाकिस्तान—में विभाजित किया गया।
पाकिस्तान का गठन: 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। यह दो हिस्सों में बना: पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश)। मुहम्मद अली जिन्ना इसके पहले गवर्नर-जनरल बने। विभाजन के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा, पलायन और साम्प्रदायिक दंगे हुए, जिसमें लाखों लोग विस्थापित हुए और कई की जान गई।
भौगोलिक और सांस्कृतिक आधार: पाकिस्तान का निर्माण मुख्य रूप से मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों, जैसे पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा और पूर्वी बंगाल, को मिलाकर किया गया। इसका नाम "पाकिस्तान" (पाक+स्थान, अर्थात "पवित्र भूमि") सर चoudhry Rahmat Ali ने 1933 में सुझाया था।
संक्षेप में, पाकिस्तान का निर्माण धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक कारकों के संयोजन से हुआ, जिसमें दो-राष्ट्र सिद्धांत और ब्रिटिश भारत के विभाजन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।