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मां ताप्ती पर अतिक्रमण : जीवनदायिनी धारा का संकट

मां ताप्ती पर अतिक्रमण : जीवनदायिनी धारा का संकट

“नदियों के तटों पर ही सभ्यता पलती है।” यह केवल एक कथन नहीं, बल्कि मानव इतिहास का शाश्वत सत्य है। हर महान सभ्यता किसी न किसी नदी की गोद में जन्मी और फली-फूली है। जल ही जीवन है और नदियाँ उस जीवन की धारा हैं। मां ताप्ती भी ऐसी ही एक जीवनदायिनी नदी हैं, जिनकी गोद में अनगिनत गाँव, नगर और संस्कृतियाँ पनपी हैं। ताप्ती ने अपने निर्मल प्रवाह से खेतों को उर्वर बनाया, समाज को जीवन दिया और संस्कृति को संजोए रखा।

परंतु आज की विडंबना यह है कि वही मां ताप्ती संकट में हैं। कुछ जनमानस अपने स्वार्थ के लिए उनका मार्ग रोके हुए हैं। अतिक्रमण, अवैध निर्माण और प्रदूषण ने उनकी स्वतंत्र धारा को बाधित कर दिया है। जहाँ ताप्ती को स्वच्छंद बहना चाहिए, वहाँ कंक्रीट की दीवारें खड़ी कर दी गई हैं। जहाँ तट पर हरियाली लहरानी चाहिए, वहाँ कचरे और प्लास्टिक का ढेर लगा है। नदी की छाती पर यह अतिक्रमण केवल जल प्रवाह को ही नहीं रोकता, बल्कि हमारी सभ्यता और संस्कृति को भी बाधित करता है।

दुःख की बात यह है कि इस पावन धारा से जुड़ी हमारी प्राचीन धरोहरें भी उपेक्षा की शिकार हैं। मां ताप्ती का प्राचीन मंदिर और उससे जुड़ा पवित्र कुंड संरक्षण के अभाव में जर्जर अवस्था में है। जिस स्थान पर श्रद्धालु शांति और आस्था का अनुभव करते हैं, वहाँ अब अव्यवस्था और उपेक्षा का वातावरण है। इतना ही नहीं, ताप्ती के सरोवर पर स्थित मंदिर भी जीर्णशीर्ण हो चुका है। इन धरोहरों की दुर्दशा हमारे समाज और प्रशासन की संवेदनहीनता का प्रतीक बन गई है।

सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि इस गंभीर समस्या पर हमारे जनप्रतिनिधि मौन क्यों हैं? बैतूल जिले के जनप्रतिनिधि मां ताप्ती के संरक्षण और विकास के लिए गंभीर दिखाई नहीं देता। वह केवल औपचारिकता निभाने और दिखावा करने में व्यस्त है। न तो उसके पास ताप्ती की अविरल धारा के लिए कोई ठोस योजना है और न ही इच्छाशक्ति कि वह इस क्षेत्र का सही मायनों में विकास कर सके। जनता की उम्मीदें जिन कंधों पर टिकी थीं, वही कंधे जिम्मेदारी से मुंह मोड़े बैठे हैं।

नदी पर हो रहा यह अन्याय केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि आपदा का संकेत भी है। जब नदियों का मार्ग रोका जाता है तो बाढ़ और जलभराव का खतरा बढ़ता है। नदी के प्रदूषित होने से भूजल दूषित होता है और पीने योग्य जल का संकट गहराता है। इसके साथ ही तटवर्ती पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो जाता है। मछलियाँ, पक्षी और असंख्य जीव-जंतु, जिनका जीवन नदी पर आधारित है, धीरे-धीरे विलुप्त होने लगते हैं। यह सब केवल वर्तमान पीढ़ी को नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी खतरे में डाल रहा है।

मां ताप्ती का सम्मान और संरक्षण करना केवल सरकार या प्रशासन का कर्तव्य नहीं है। यह समाज के हर वर्ग की जिम्मेदारी है। प्रशासन यदि अतिक्रमण हटाने के लिए कदम उठाए तो जनता को भी उसका साथ देना होगा। लेकिन इसके लिए सबसे पहले जनप्रतिनिधियों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यदि जनप्रतिनिधि केवल दिखावे की राजनीति करते रहेंगे और इच्छाशक्ति से दूर रहेंगे, तो इस क्षेत्र का समुचित विकास संभव ही नहीं है।

समय की मांग है कि हम अपने छोटे-छोटे स्वार्थों से ऊपर उठें और ताप्ती के मार्ग को अविरल बनाएँ। हमें नदियों को केवल उपयोग की वस्तु नहीं, बल्कि मां का स्वरूप मानकर उनका संरक्षण करना चाहिए। यदि हम अपने प्राचीन मंदिरों, कुंडों और सरोवरों का संरक्षण नहीं करेंगे तो हमारी संस्कृति का मूल भी धीरे-धीरे मिट जाएगा।

मां ताप्ती की रक्षा करना केवल पर्यावरण की रक्षा करना नहीं है, बल्कि जीवन की रक्षा करना है। नदियों के तटों पर ही सभ्यता पलती है, और यदि हम इन तटों को बर्बाद करेंगे तो सभ्यता का भविष्य भी बर्बाद कर देंगे। अतः आओ, संकल्प लें कि हम मां ताप्ती को अतिक्रमण से मुक्त कराएँगे, उनकी धारा को निर्मल और अविरल बनाएँगे, उनके प्राचीन मंदिरों और सरोवरों का संरक्षण करेंगे और आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित व समृद्ध धरोहर सौंपेंगे।

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