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विमुक्ति दिवस: संजोई की मुसहर बस्ती में पहली बार गूँजी आज़ादी की कहानी

वाराणसी, 31 अगस्त 2025।
ग्राम सभा संजोई की मुसहर बस्ती ने आज एक ऐतिहासिक दिन देखा। संस्था SUSS NSSS की पहल पर नट, मुसहर, धरिकर और अन्य विमुक्त घुमंतु समुदाय (DNT) के लोग पहली बार एक साथ आए और अपनी पहचान व अधिकारों के लिए विमुक्ति दिवस मनाया।
भारत में अंग्रेज़ों के शासनकाल के दौरान 1871 में इन समुदायों को "क्रिमिनल ट्राइब्स" (अपराधी जाति) के रूप में चिन्हित कर दिया गया था। इस क़ानून ने पूरे समाज को कलंकित कर दिया, जिससे पीढ़ियों तक शिक्षा, रोज़गार और सम्मान से वंचित रहना पड़ा। 31 अगस्त 1952 को सरकार ने इस काले क़ानून को समाप्त किया और इन जातियों को "विमुक्त" घोषित किया। लेकिन आज़ादी के सात दशक बाद भी इन समुदायों को समाज में बराबरी और हक़ हासिल करने की लड़ाई जारी है।
कार्यक्रम में अनिल कुमार ने DNT समुदाय के इतिहास को विस्तार से बताया और यह याद दिलाया कि यह दिन केवल आज़ादी का नहीं, बल्कि संघर्ष को आगे बढ़ाने का प्रतीक है। प्रीति ने समुदाय के अधिकारों और समाधान पर चर्चा की—शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक न्याय को हर घर तक पहुँचाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। वहीं रूपा ने महिला हिंसा और उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की महत्व पर बात कीबस्ती के लोग गहरी दिलचस्पी से अपनी ही कहानी सुनते रहे। कई बुजुर्गों ने माना कि उन्होंने पहली बार अपने इतिहास और विमुक्ति दिवस के महत्व को इतने विस्तार से समझाया गया
यह आयोजन केवल एक कार्यक्रम नहीं बल्कि समुदाय की जागरूकता, आत्मसम्मान और आने वाली पीढ़ियों को उनका भूला हुआ इतिहास लौटाने की पहल किया गया।
संस्था के साथी अनिल कुमार प्रीति रूपा राजेश सिंह अनूप कुमार नट रतन कुमार
समुदाय की महिला फूला शीला प्रेम अटवारी मुन्नी कुसुम कलावती जुगनी प्रमिला आदि थे

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