logo

सफलता की कहानी

सफलता की कहानी
..
कम्युनिटी किचन : बच्चों को पोषण और महिलाओं को आत्मनिर्भरता की राह
..
स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बच्चों के लिए बनाए जाते हैं विशेष व्यंजन
..
अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन (एआईएफ) द्वारा स्नेह परियोजना के अंतर्गत दो कम्युनिटी किचन की स्थापना की गई है एक ग्यारसपुर और दूसरा हैदरगढ़ में। आज हम बात कर रहे हैं ग्यारसपुर के कम्युनिटी किचन की, जिसे (एआईएफ) द्वारा स्थापित किया गया है। जिसे लक्ष्मी स्व सहायता समूह की 8 महिलाएं मिलकर इसका संचालन कर रही हैं।

यह रसोई प्रतिदिन 6 माह से 6 वर्ष की उम्र के लगभग 1000 बच्चों को गर्म और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराती हैं। यह भोजन 30 आंगनबाड़ी केंद्रों तक पहुंचाया जाता है। वितरण के लिए 4 वाहन निर्धारित रूट मैप के अनुसार चलते हैं ताकि सभी बच्चों तक समय पर भोजन पहुंच सके।

6 माह से 3 वर्ष तक के बच्चों के लिए विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं जिसमें आटा बेसन लापसी, मुरमुरा बेसन लापसी, पौष्टिक खिचड़ी, नमकीन दलिया और 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए बाजरा बेसन लड्डू, चिवड़ा बेसन लड्डू, पौष्टिक उपमा, पौष्टिक पोहा इत्यादि शामिल है। इन व्यंजनों से बच्चों का स्वास्थ्य सुधरा है और कई बच्चों का वजन बढ़ा है, जो कुपोषण के खिलाफ एक सकारात्मक संकेत है।

रसोई का संचालन करने वाली जसोदा बाई (अध्यक्ष), ललिता बाई (उपाध्यक्ष) और पूजा, विनीता, साकी बाई, मीरा बाई, राज बाई, प्रभा बाई हैं। ये महिलाएं हर दिन प्रेम और समर्पण से भोजन तैयार करती हैं और पूरी जिम्मेदारी से किचन की व्यवस्था संभालती हैं।

प्रशिक्षण, स्वच्छता और वित्तीय समझ के लिए अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन द्वारा इन महिलाओं को रसोई संचालन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण प्रशिक्षण दिए गए हैं।

रसोई प्रबंधन के लिए पौष्टिक व्यंजन बनाने का प्रशिक्षण, हाथ धोने और स्वच्छता बनाए रखने की प्रक्रिया, बर्तनों की सफाई और किचन की स्वच्छता, पोषण वाटिका (छनजतप ळंतकमद) तैयार करना, त्यौहारी व्यंजन जैसे लड्डू, नमकीन, खुरमी बनाने का प्रशिक्षण, हर दिन की शुरुआत सभी महिलाएं सामूहिक रूप से हाथ धोकर करती हैं ताकि भोजन पूरी तरह से स्वच्छ और सुरक्षित रहे।

- हिसाब-किताब और दस्तावेज बनाना भी सीखा -

महिलाओं को यह भी सिखाया गया है कि वे दैनिक आय-व्यय का हिसाब रखें और दस्तावेज तैयार करें। इससे उन्हें यह जानकारी रहती है कि प्रतिदिन कितनी आमदनी हो रही है, कितना खर्च हो रहा है, कितनी बचत हो रही है। अब महिलाएं अपने कमाए हुए पैसों का सही उपयोग कर पा रही हैं, जैसे बच्चों की पढ़ाई, घरेलू जरूरतें या आपात स्थिति में सहयोग।

- रोजगार का एक नया रास्ता -

यह रसोई महिलाओं के लिए केवल सेवा का जरिया नहीं, बल्कि रोजगार का माध्यम भी बन गई है। त्यौहारों और आयोजनों के समय महिलाएं लड्डू, खुरमी, नमकीन जैसी चीजें ऑर्डर पर बनाकर बेचती हैं। इसके साथ ही, उनकी अपनी पोषण वाटिका भी है, जहां से वे हरी सब्जियां लेकर रसोई में प्रयोग करती हैं। इससे भोजन और भी पौष्टिक होता है और बाजार पर निर्भरता कम होती है और पैसों की बचत होती है

- नियमित बैठकें और निगरानी -

समूह की अध्यक्ष जसोदा बाई और ललिता बाई हर सप्ताह सभी महिलाओं के साथ बैठक करती हैं, जिसमें स्टोरेज की जांच, दस्तावेजों का संधारण, आय-व्यय का हिसाब जैसे कार्य किए जाते हैं।

इसके अतिरिक्त, अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन की तरफ से परियोजना प्रबंधक कृति प्रधान और परियोजना सहायक दीक्षा चैहान हर महीने समूह की महिलाओं से बैठक करती हैं। इसमें अगर किसी प्रकार की चुनौती आती है, तो उस पर चर्चा की जाती है और क्षेत्र पर्यवेक्षकों व सीडीपीओ अधिकारी के साथ मिलकर समाधान निकाला जाता है।

- सरकारी मान्यता -

काम की विश्वसनीयता लक्ष्मी समूह को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन और खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के तहत पंजीकरण प्राप्त है। इससे समूह को कानूनी और संस्थागत मान्यता प्राप्त हुई है, जिससे उनका कार्य और भी सुदृढ़ हुआ है।

- एक प्रेरणादायक परिवर्तन -

अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन द्वारा स्थापित यह रसोई, और लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा उसका संचालन, आज ग्यारसपुर ब्लॉक में एक सशक्त और सकारात्मक बदलाव की मिसाल बन चुका है।

यह पहल दिखाती है कि यदि महिलाओं को सही मार्गदर्शन, प्रशिक्षण और सहयोग मिले, तो वे न सिर्फ समुदाय को पोषण दे सकती हैं, बल्कि खुद की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ कर सकती हैं। यह कम्युनिटी किचन केवल एक रसोई नहीं, बल्कि सम्मान, सशक्तिकरण और सामूहिक प्रयास की जीवंत कहानी है।

Jansampark Madhya Pradesh

#vidisha

70
1646 views