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तहसील विकासनगर की ग्राम पंचायत ढालीपुर आसान झील रिजर्व फॉरेस्ट एरिया से लगती यमुना नदी में अवैध रूप से बने खनन भंडारण की आड़ में बदस्तूर यमुना में जारी है अवैध मशीनी खनन माफिया का ऊंची राजनीतिक पहुंच का दावा

आसन झील रामसर साइट पर अवैध खनन का कहर: वन्यजीव और पर्यावरण खतरे में
विकासनगर, देहरादून: उत्तराखंड की पहली रामसर साइट, आसन झील (आसन वेटलैंड रिजर्व फॉरेस्ट एरिया), जो तहसील विकासनगर मुख्यालय से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, आज अवैध खनन के कारण अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। यह झील, जो हर साल साइबेरिया सहित विदेशी पक्षियों के शीतकालीन प्रवास का प्रमुख केंद्र है, पक्षी प्रेमियों और पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। लेकिन राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के सख्त निर्देशों के बावजूद, आसन नदी और यमुना नदी में रात-दिन चल रहा अवैध खनन इस संवेदनशील क्षेत्र की जैव विविधता को नष्ट करने की कगार पर ले जा रहा है।
रामसर साइट की महत्ता और खतरा आसन झील, 444.4 हेक्टेयर में फैली, यमुना और आसन नदी के संगम पर बनी है। यह क्षेत्र 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा संरक्षण रिजर्व घोषित किया गया था और 2020 में उत्तराखंड की पहली रामसर साइट के रूप में मान्यता प्राप्त हुई थी। यहाँ प्रतिवर्ष अक्टूबर से मार्च तक हजारों प्रवासी पक्षी, जिनमें दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियाँ शामिल हैं, जैसे पेंटेड स्टॉर्क और ब्लैक-हेडेड आइबिस, प्रवास के लिए आते हैं। इसके अलावा, यहाँ 49 मछली प्रजातियाँ, जिनमें लुप्तप्राय पुटिटर महासीर शामिल है, भी पाई जाती हैं। यह जैव विविधता न केवल पर्यावरणीय संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यटन और बर्ड वॉचिंग के लिए भी इस क्षेत्र को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध बनाती है।
हालांकि, एनजीटी ने इस संरक्षण रिजर्व के 10 किलोमीटर के दायरे में किसी भी तरह के वैध या अवैध खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया हुआ है ताकि जलजीव और वन्यजीवों का संरक्षण हो सके। इसके बावजूद, स्थानीय सूत्रों और समाचारों के अनुसार, खनन माफिया रात-दिन भारी मशीनों, जैसे पोकलैंड, का उपयोग कर आसन नदी और यमुना नदी से अवैध रूप से बालू और पत्थर निकाल रहे हैं।
खनन माफिया की ऊंची पहुंच स्थानीय समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों में लगातार इस अवैध खनन की खबरें सुर्खियां बन रही हैं। सूत्रों का दावा है कि खनन माफिया को स्थानीय प्रशासन और कुछ उच्च अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है, जिसके कारण एनजीटी और उत्तराखंड सरकार के आदेशों की खुलेआम अवहेलना हो रही है। यह भी आरोप है कि माफिया न केवल अवैध खनन में लिप्त हैं, बल्कि वन्यजीवों का शिकार भी कर रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी और जैव विविधता को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में आसन वेटलैंड के 10 किलोमीटर के दायरे में अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए थे और दोषियों पर कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी थी। लेकिन स्थानीय स्तर पर प्रशासन की निष्क्रियता के कारण माफिया के हौसले बुलंद हैं। रात के अंधेरे में भारी मशीनों से नदियों की खुदाई और दिन में ट्रैक्टरों व ट्रकों से अवैध सामग्री का परिवहन बेरोकटोक जारी है।
प्रभाव और चिंताएँ अवैध खनन से आसन झील और आसपास के क्षेत्र में वन्यजीवों और जलजीवों की दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित हो रही है। नदियों का जलस्तर कम होने से सिंचाई और पर्यावरणीय संतुलन पर भी असर पड़ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि माफिया किसानों के नाम पर खनन की अनुमति लेते हैं, लेकिन इसका उपयोग व्यावसायिक लाभ के लिए करते हैं, जिससे प्रतिदिन लाखों रुपये की अवैध कमाई हो रही है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि राज्य की खनिज संपदा और राजस्व की भी लूट हो रही है।
क्या जागेगा प्रशासन? आसन झील के संरक्षण के लिए वन विभाग को प्रतिवर्ष भारी पैकेज प्राप्त होता है, लेकिन इस धन का उपयोग कितना प्रभावी हो रहा है, यह एक बड़ा सवाल है। खनन माफिया की ऊंची राजनीतिक पहुंच और प्रशासन की कथित मिलीभगत ने इस संवेदनशील रामसर साइट को खतरे में डाल दिया है। अब सवाल यह है कि क्या इस खबर के प्रकाशन के बाद जिम्मेदार अधिकारी और प्रशासन जागेगा, या माफिया की मनमानी और अवैध गतिविधियाँ यूँ ही चलती रहेंगी?
मांग और अपील स्थानीय पर्यावरणविद् और पक्षी प्रेमी मांग कर रहे हैं कि एनजीटी और उत्तराखंड सरकार इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करे। अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए सख्त कार्रवाई, नियमित निगरानी, और दोषियों के खिलाफ कठोर दंड की आवश्यकता है। साथ ही, वन्यजीवों के शिकार के आरोपों की गहन जांच होनी चाहिए ताकि इस अनमोल रामसर साइट और इसके जैव विविधता को बचाया जा सके।
आसन झील का भविष्य आसन झील न केवल उत्तराखंड की शान है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। यदि समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो यह ऐतिहासिक और पर्यावरणीय धरोहर हमेशा के लिए नष्ट हो सकती है। अब यह जिम्मेदारी प्रशासन, सरकार, और समाज की है कि वे इस प्राकृतिक खजाने को बचाने के लिए एकजुट हों।
नोट: यह खबर जनहित में प्रकाशित की गई है। पाठकों से अनुरोध है कि वे इस मुद्दे को समर्थन दें और प्रशासन से कार्रवाई की मांग करें।

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