शहरीकरण की चुनौती में हरियाली का समाधान : मियावाकी फॉरेस्ट की भूमिका
शहरीकरण मियावाकी
जंगल और हरित नीति के साथ टिकाऊ भारतीय शहरों की राह
.. डॉ नयन प्रकाश गांधी
मियावाकी फॉरेस्ट के अलावा शहरों में रूफटॉप गार्डन, वर्षा जल संचयन, ऊर्जा-संरक्षण वाले भवन, सार्वजनिक परिवहन में सुधार और ठोस कचरा प्रबंधन जैसी पहलों को भी अनिवार्य रूप से अपनाना होगा। शहरी नियोजन की नीतियों में नागरिक भागीदारी, निजी क्षेत्र का सहयोग तथा पर्यावरणीय मानकों और टिकाऊ विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।शहरीकरण को केवल भौतिक विकास के रूप में नहीं, बल्कि हरित, स्वस्थ और टिकाऊ जीवन की नींव के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि सरकार, प्रशासन, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र मिलकर हरियाली के इन नए उपायों को प्राथमिकता देंगे, तो भारतीय शहर केवल रहने लायक नहीं, बल्कि समृद्ध और जीवनदायिनी भी बनेंगे।
............
भारत आज शहरीकरण की असाधारण गति के साथ आगे बढ़ रहा है। देश की करीब 35% आबादी शहरों में निवास करती है, और मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, अहमदाबाद, पुणे, जयपुर, सूरत जैसे शहर लगातार जनसंख्या, निर्माण और संसाधन खपत की नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। इस तेज़ विकास ने एक तरफ सामाजिक-आर्थिक संभावनाएं खोली हैं, तो दूसरी तरफ हवा, पानी, हरियाली और जैव विविधता में गिरावट के गंभीर संकट भी पैदा किए हैं।बढ़ता वायु प्रदूषण, जल संकट, तापमान में वृद्धि, शहरी बाढ़, हीट आइलैंड प्रभाव और बेजान कंक्रीट के जंगल शहरी जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं। अधिकांश बड़े शहरों की हवा खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुकी है, जिससे सांस से जुड़ी बीमारियों और समयपूर्व मृत्यु के मामले बढ़ रहे हैं। साथ ही, लगातार घटती हरियाली और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन ने शहरी जीवन को दुष्कर बना दिया है।इतनी गंभीर स्थिति में मियावाकी फॉरेस्ट जैसी नवाचारी पद्धति ने शहरी हरियाली को पुनर्जीवित करने की आशा जगायी है। मियावाकी विधि से शहरों की अनुपयोगी छोटी भूमि पर देशज प्रजातियों के सघन पौधे लगाकर घने और विविधतापूर्ण जंगल तैयार किए जाते हैं। ये जंगल तेजी से बढ़ते हैं, पारंपरिक पद्धति से कहीं अधिक घने और आत्मनिर्भर बनते हैं, और वायु प्रदूषण कम करने, कार्बन कैप्चर, तापमान संतुलन और जैव विविधता को बढ़ावा देने में अत्यंत कारगर साबित हो रहे हैं।मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई, पुणे, हैदराबाद, इंदौर, सूरत, प्रयागराज, वडोदरा जैसी जगहों पर मियावाकी फॉरेस्ट तैयार किए जा चुके हैं या कई में प्रक्रिया में हैं। यहां पार्क, सरकारी भूखंड, विद्यालय आदि जगहों पर आम जनता, प्रशासन और निजी संगठनों की मदद से ऐसे फॉरेस्ट साकार हो रहे हैं। नतीजतन, शहरी समुदायों को शुद्ध हवा, प्राकृतिक मानसून नियंत्रण, मनोरंजन के हरे-भरे स्थान और स्थानीय जैव विविधता के नए केंद्र मिल रहे हैं।अर्बन प्लानिंग मैनेजमेंट रिसर्चर नयन प्रकाश गांधी का कहना है कि मियावाकी फॉरेस्ट के अलावा शहरों में रूफटॉप गार्डन, वर्षा जल संचयन, ऊर्जा-संरक्षण वाले भवन, सार्वजनिक परिवहन में सुधार और ठोस कचरा प्रबंधन जैसी पहलों को भी अनिवार्य रूप से अपनाना होगा। शहरी नियोजन की नीतियों में नागरिक भागीदारी, निजी क्षेत्र का सहयोग तथा पर्यावरणीय मानकों और टिकाऊ विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।शहरीकरण को केवल भौतिक विकास के रूप में नहीं, बल्कि हरित, स्वस्थ और टिकाऊ जीवन की नींव के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि सरकार, प्रशासन, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र मिलकर हरियाली के इन नए उपायों को प्राथमिकता देंगे, तो भारतीय शहर केवल रहने लायक नहीं, बल्कि समृद्ध और जीवनदायिनी भी बनेंगे।शहरीकरण की चुनौती से निपटने के लिए मियावाकी फॉरेस्ट जैसे नवाचारों को अपनाते हुए, टिकाऊ शहरी नीति एवं सामूहिक जिम्मेदारी के साथ ही भारतीय महानगरों को आने वाले समय में स्वच्छ, सुंदर और जैव विविधतापूर्ण बनाना संभव है