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सहयोग सामाजिक संस्था द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भूमिका पर परिचर्चा का आयोजन

मेरठ - सहयोग सामाजिक संस्था द्वारा आजादी की लड़ाई में महिलाओं की भूमिका विषय पर परिचर्चा का आयोजन ब्रह्मपुरी स्थित चावली देवी आर्य कन्या इंटर कालेज में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ स्कूल प्रधानाचार्य डॉ नीलम सिंह ने भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया गया। इसके पश्चात कवयित्री डॉ नीलम मिश्रा 'तरंग' ने भारत माता की वंदना -भारत माता तेरे चरणों में अपना शीश झुकाते हैं प्रस्तुत की।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सुप्रसिद्व लेखिका और उपन्यासकारा डॉ सुधा शर्मा ने परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा कि आजादी की लड़ाई में महिला क्रांतिकारियों द्वारा देशभक्ति से ओतप्रोत लोकगीतों का भी सहारा लिया गया था। इन लोकगीतों ने नवयुवको में नया जोश और जज्बा भर दिया था जिनकी टोलियों में गाए जाने गीतों में अंग्रेजों के प्रति ताने-उलाहने होते थे।
श्रीमती शर्मा ने अफसोस जताते हुए कहा कि आजाद भारत में बाद की पीढ़ी उन लोकगीतों को सहेज न सकी, जिन गीतों ने नवयुवकों में जोश भर दिया था और वे सब कुछ त्याग कर देश की आजादी के लिए निकल पड़े थे। अगर आजादी के बाद उन लोकगीतों को सहज कर रख लिया जाता तो आज की पीढ़ी उन लोकगीतों रूबरू हो प्रेरणा ले पाती।
डॉ पूनम शर्मा ने बताया कि कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने कविताओं के माध्यम से आजादी की अलख जगाई थी। अंग्रेजों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के कारण उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा।
उन्होंने आगे कहा कि मराठा शासित झांसी राज्य की रानी लक्ष्मीबाई 1857 की राज्य क्रांति की द्वितीय शहीद वीरांगना थी, जो सिर्फ 29 वर्ष की आयु में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीर गति को प्राप्त हुई।
संस्था की नवनियुक्त निदेशिका अरुणा पंवार ने कहा कि आजादी की लड़ाई में मुस्लिम महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान था । उन्होंने बताया कि आजादी की लड़ाई में शामिल होने वाली मुस्लिम महिलाएं बड़ी किरदार थी,जो न केवल पर्दा तोड़कर बाहर निकली, बल्कि मैदान ए जंग में बहादुरी से लडी। बानो बेगम उर्फ बी अम्मा भारत की पहली मुस्लिम राजनीतिक कार्यकर्ता थी।
उन्होंने आगे बताया कि बेगम हजरत महल पहली महिला क्रांतिकारी थी, जो अवथ के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम थी, जिन्हें अंग्रेजों ने बंगाल निर्वासित कर दिया था। पति के निर्वासन के बाद बेगम हजरत महल ने अवध की बागडोर संभाली और 1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाई।
संस्था के अध्यक्ष दिनेश कुमार शांडिल्य एडवोकेट ने कहा कि आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। महिलाओं ने देश की आजादी के लिए अपने जेवर बेचे। उन्होंने आगे बताया कि अंग्रेज महिला क्रांतिकारियों से इतने ज्यादा भयभीत थे कि महिलाओं को भी उन्होंने फांसी की सजा दी। उन्होंने कहा कि आजादी में महिलाओं के स्वर्णिम इतिहास को कम करके नहीं आंका जा सकता।
श्री शांडिल्य ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का लक्ष्य रखा है। जो बिना महिलाओं के योगदान के प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए महिलाओं ऐसे ही समर्पित भाव से देश के विकास में अपना योगदान देना होगा,जैसा देश की आजादी के लिए एक जुट होकर लड़ाई लडी थी।
उन्होंने बताया कि बच्चों में संस्कार और राष्ट्रप्रेम की भावना पैदा करना कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है।
स्कूल प्रधानाचार्य डा नीलम सिंह ने झांसी की रानी के संघर्ष को विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि शहीदों की कुर्बानी के कारण ही आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं।
सत्य पाल दत्त शर्मा ने कहा कि आजादी के बाद महिलाओं की स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन आया है आज महिलाएं फाइटर जैट उड़ा रही है , युद्ध की कमान संभाल कर सरहद की रक्षा कर रही हैं । उन्होंने कहा कि हाल ही में भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय सेना की ओर से आपरेशन सिंदूर की मीडिया ब्रीफिंग का सह नेतृत्व करने वाली कर्नल सैफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह जैसी महिलाओं पर हर भारतीय को गर्व है।
डॉ नीलम मिश्रा तरंग ने कहा कि राष्ट्रप्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नही है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के नसीब में बोर्डर पर जाकर लड़ाई लड़ना नहीं है, लेकिन यदि हम अपने अपने क्षेत्र में ईमानदारी से शानदार प्रदर्शन करते हुए ँराष्ट्रनिर्माण में अपना योगदान दे, तो इसे भी सच्ची राष्ट्रसेवा माना जाएगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ प्रेम कुमार शर्मा ने की तथा संचालन दिनेश शांडिल्य ने किया।कार्यक्रम में भारी संख्या में स्कूल छात्राएं मौजूद रही। अंत में दो मिनट का मौन रखकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई। अनिल सिंघल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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