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भीम आर्मी भारत एकता मिशन का नारायणपुर जिले के अति संवेदनशील क्षेत्र ओरछा विकासखंड के रेखवाया ग्राम स्थित भूमकाल छात्रावास और स्कूल का दो दिवसीय दौरा

नारायणपुर।भीम आर्मी भारत एकता मिशन की टीम ने ओरछा विकासखंड के ग्राम रेखवाया स्थित भूमकाल छात्रावास का निरीक्षण कर बच्चों की वास्तविक परिस्थितियों का जायजा लिया।

निरीक्षण में सामने आई प्रमुख समस्याएँ:

छात्र–छात्राएं झोपड़ीनुमा खुले कमरों में रहते और पढ़ाई करते हैं, जहाँ चारों ओर दीवार तक नहीं है।

पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं, छात्रावास के पास बहने वाले नाले से ही पानी लिया जाता है।

छात्रावास की बाउंड्री न होने से जंगली जानवरों का हमेशा खतरा बना रहता है।

पर्याप्त राशन न होने के कारण कई बच्चों को घर भेजना पड़ा है, फिर भी अनाज की भारी कमी बनी हुई है।

बिजली की व्यवस्था केवल एक सोलर प्लेट से है, जिससे दो लाइटें ही जल पाती हैं।

नियमित शिक्षक नहीं हैं, गाँव के शिक्षित युवा "शिक्षा दूत" के रूप में पढ़ा रहे हैं, जिन्हें कोई वेतन नहीं मिलता।

मेडिकल सुविधा का अभाव, छोटी बीमारियों में भी बच्चों को भारी परेशानी होती है।

शौचालय और साफ पानी की कोई सुविधा नहीं है।

छात्र और छात्राएं एक साथ रहते हैं, छात्राओं के लिए गोपनीयता का कोई प्रबंध नहीं है।


पृष्ठभूमि:
यह छात्रावास वर्ष 2021 से स्थानीय ग्रामीण समिति द्वारा संचालित किया जा रहा है। कई बार जिला कलेक्टर को लिखित जानकारी देने के बावजूद अब तक किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिली है।
ग्रामीण हर घर से चावल और ₹10 एकत्रित कर बच्चों की पढ़ाई और भोजन की व्यवस्था करते हैं। वर्तमान में छात्रावास में लगभग 70–80 छात्र–छात्राएं रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

निरीक्षण में शामिल भीम आर्मी के पदाधिकारी:
संभागीय अध्यक्ष सुयल नाग, संभागीय उपाध्यक्ष हिडमे मरकाम, प्रवक्ता सुभाष देवराज मेश्राम, बामन पोडियाम, लखन पुनेम, रैनु ओयाम, विनेश पोडियाम एवं अन्य साथीगण।



आदिवासी अंचल के बच्चों को शिक्षा के अधिकार और मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित रहना पड़ रहा है।
भूमकाल छात्रावास एवं स्कूल को लेकर अब नया विवाद सामने आया है। एक ओर जहां उच्च अधिकारी यहां पढ़ने वाले बच्चों को अन्य स्कूलों में स्थानांतरित करने का दबाव बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गांव के आदिवासी परिजन इस प्रयास का विरोध कर रहे हैं
स्थानीय आदिवासी अभिभावकों ने चेतावनी दी है कि वे अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित रखने और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए इस स्कूल को गांव में ही चलाते रहेंगे, भले ही उन्हें सरकारी मदद मिले या न मिले।

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