घुसपैठियों भारत छोड़ो — राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा की पुकार
सत्यवीर सिंह ‘मुनि’
15 अगस्त 2025 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक गंभीर विषय पर राष्ट्र का ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि घुसपैठ अब केवल एक सीमित समस्या नहीं रह गई है, बल्कि यह भारत की आंतरिक सुरक्षा, सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक मूल्यों पर सीधा आघात कर रही है। उनके अनुसार, घुसपैठ के कारण न केवल सामाजिक समरसता पर संकट उत्पन्न हो गया है, बल्कि इससे हमारी बहु-बेटियों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई है।
इस वक्तव्य के बाद देश में एक व्यापक राजनीतिक बहस छिड़ सकती है। कुछ राजनीतिक दलों ने इसे मानवाधिकारों से जोड़कर देखेंगे तो कुछ ने इसे सुरक्षा और संप्रभुता के परिप्रेक्ष्य में एक आवश्यक चेतावनी मानेंगे। लेकिन इस समूचे विमर्श में सबसे अहम बात यह है कि क्या वाकई घुसपैठ भारत के लिए एक गंभीर संकट बन चुका है, और यदि हां, तो इसका समाधान क्या है? घुसपैठ केवल सीमाओं को पार करने का नाम नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्र की आंतरिक संरचना, संसाधनों और सामाजिक संतुलन को प्रभावित करने वाली क्रिया है। पिछले कुछ दशकों में खासकर पूर्वोत्तर राज्यों, पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब और राजस्थान जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ की घटनाएं निरंतर बढ़ती रही हैं। यह घुसपैठ केवल आर्थिक कारणों से प्रेरित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक संरक्षण, धार्मिक कट्टरता और सामरिक रणनीतियां भी काम कर रही हैं। कई बार विदेशी शक्तियां, भारत की आंतरिक अशांति को बढ़ाने के लिए इस प्रकार की गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं। यह बात सत्य है कि भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण राष्ट्र में विभिन्न भाषा, धर्म, जाति और संस्कृति के लोगों का सहअस्तित्व रहा है। किंतु जब कोई विदेशी तत्व अवैध रूप से भारत में प्रवेश करता है, और फिर छदम नागरिक बन अधिकारों की मांग करते हुए भारतीय सामाजिक तानेबाने को चुनौती देता है, तो यह कृत्य न केवल असंवैधानिक है, बल्कि राष्ट्र की संप्रभुता के लिए भी खतरा है।
भारत सरकार द्वारा किए गए विभिन्न अध्ययनों और गुप्तचर रिपोर्टों में यह खुलासा हुआ है कि लाखों की संख्या में घुसपैठिए भारत में रह रहे हैं। वे राशन कार्ड, आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज बनवा चुके हैं। जिसके सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की है कि आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र हासिल करना भारतीय नागरिकता प्राप्त करना नहीं है। कुछ स्थानों पर घुसपैठिये स्थानीय राजनीति में भी सक्रिय हो गए हैं। इसके दुष्परिणाम यह हैं कि वास्तविक भारतीय नागरिकों के अधिकार छीने जा रहे हैं, बेरोजगारी बढ़ रही है, और सांस्कृतिक टकराव उत्पन्न हो रहे हैं। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य का एक पक्ष महिलाओं की सुरक्षा से भी जुड़ा है। यह आरोप लगाया गया है कि घुसपैठिए समूहों द्वारा महिलाओं के साथ दुष्कर्म, अपहरण, मानव तस्करी जैसी घटनाएं घटित की जा रहीं हैं। ऐसे अपराध केवल कानून व्यवस्था को ही ध्वस्त नहीं करतें हैं, बल्कि समाज के नैतिक तानेबाने को छिन्न-भिन्न करने करने का काम करतें हैं। सामाजिक समरसता ,जो भारत की एक ऐतिहासिक विरासत रही है, आज इन घुसपैठियों के कारण खतरे में पड़ गई है। धार्मिक असहिष्णुता, सांप्रदायिक झगड़े, भाषाई तनाव और जातिगत विवाद इन घुसपैठियों की उपस्थिति से ही और अधिक भड़क रहे हैं। जब एक क्षेत्र विशेष में स्थानीय जनसंख्या का संतुलन बदलने लगता है, तो वहां के सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं पर भी प्रभाव पड़ता है।
राजनीतिक संकट की बात करें तो कुछ राजनीतिक दल इस विषय पर दोहरी नीति अपनाते दिखते हैं। एक ओर वे राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करते हैं, दूसरी ओर वे इन घुसपैठियों को ‘शरणार्थी’ कहकर उनके अधिकारों की मांग करते हैं। यह विडंबना है कि वोट बैंक की राजनीति में कुछ पार्टियां राष्ट्रहित को पीछे छोड़कर तात्कालिक लाभ को प्राथमिकता देती हैं। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि नागरिकों और सरकार के बीच एक स्पष्ट संवाद स्थापित हो। केंद्र और राज्य सरकारें को मिलकर एक ठोस रणनीति बनाए, जिसमें यह स्पष्ट हो कि भारत में रह रहे घुसपैठियों की पहचान कैसे की जाएगी, उन्हें देश से कैसे निकाला जाएगा, और भविष्य में ऐसी घटनाओं को कैसे रोका जाए?
घुसपैठ की समस्या से निपटने लिए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) की प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष रूप से लागू करना एक समाधान हो सकता है। इसके अंतर्गत नागरिकों को अपने पूर्वजों के भारत में होने के प्रमाण देने होते हैं, जिससे घुसपैठियों को अलग किया जा सकता है। साथ ही, आधार, मतदाता सूची और अन्य दस्तावेजों की प्रमाणिकता की जांच की जानी चाहिए। इसके साथ ही भारत को अपनी सीमाओं को और अधिक सुरक्षित बनाना होगा। सीमा सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया जाए, ड्रोन निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए साथ ही सीमा क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों को जागरूक किया जाना चाहिए कि वे घुसपैठियों को कोई शरण न दें। सिर्फ सुरक्षा उपाय ही पर्याप्त नहीं हैं। हमें यह भी देखना होगा कि जिन देशों से घुसपैठ हो रही है, उनके साथ कूटनीतिक बातचीत कर, उन्हें यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि भारत की आंतरिक सुरक्षा से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। भारत को संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इस विषय को उठाना चाहिए कि किसी देश की सीमाओं का उल्लंघन एक प्रकार का अघोषित युद्ध है।
इस पूरे परिदृश्य में नागरिक समाज की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। स्कूलों, कलेजों, सामाजिक संगठनों और मीडिया को चाहिए कि वे इस विषय पर राष्ट्रवादी चेतना जाग्रत करें। घुसपैठियों भारत छोड़ो केवल एक नारा नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय अभियान बनना चाहिए, जिसमें प्रत्येक नागरिक की सहभागिता हो। इस समस्या का एक मानवीय पक्ष भी है, जिसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। कई बार कुछ लोग युद्ध, भुखमरी या अत्याचार से बचने के लिए भारत आते हैं। उनके साथ मानवीय व्यवहार आवश्यक है। लेकिन मानवीयता की आड़ में यदि कोई राष्ट्र विरोधी गतिविधि करता है या भारतीय संविधान को चुनौती देता है, तो उस पर कठोर कार्रवाई अनिवार्य है। घुसपैठियों भारत छोड़ो का नारा भारत के उन ऐतिहासिक नारों की तरह है जो राष्ट्र की आत्मा को झकझोरते हैं। जैसे कभी ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ ने भारत की स्वतंत्रता की नींव रखी, वैसे ही यह नारा भारत की सुरक्षा और स्वाभिमान की पुनः स्थापना का आह्वान है। हालांकि भारत एक उदार, लोकतांत्रिक और सहिष्णु राष्ट्र है, लेकिन उसकी सहिष्णुता को उसकी कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए। जो लोग भारत की मिट्टी में रहकर, इसकी हवा में सांस लेकर इसकी संस्कृति और संप्रभुता को चुनौती देते हैं, उन्हें यह देश कभी स्वीकार नहीं करेगा।
समय की मांग है कि समस्त भारतीय जनमानस एक होकर इस गंभीर चुनौती का सामना करे। यह केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि भारत के अस्तित्व, उसकी पहचान और भविष्य का प्रश्न है। घुसपैठियों भारत छोड़ो आज केवल प्रधानमंत्री की घोषणा नहीं, बल्कि करोड़ों भारतवासियों की आवाज बननी चाहिए। यही भारत की सुरक्षा, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक गरिमा की रक्षा का मार्ग है।