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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पशु प्रेमी और पत्रकार पीयूष सोनी ने ADC को सौंपा मांग पत्र

फगवाड़ा, 19 अगस्त — फगवाड़ा के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर को आज पत्रकार एवं पशु प्रेमी पियूष सोनी ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ मांग पत्र सौंपा, जिसमें आवारा कुत्तों को पकड़कर पॉन्ड्स या शेल्टर होम में रखने की बात कही गई है, साथ में पत्रकार मोनू सरवटे एवं पंडित रवि मौजूद रहे।

पीयूष सोनी, जो कि वाइस प्रेसिडेंट पंजाब इंटेलेक्चुअल प्रेस काउंसिल, कॉलोनी एनिमल केयरटेकर (AWBI) तथा मेंबर पीपल फॉर एनिमल्स हैं, ने बताया कि सरकार के पास न तो पर्याप्त साधन हैं और न ही कोई ठोस प्लान। ऐसे में यह कदम पशु क्रूरता के अलावा कुछ नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि—
👉 सिर्फ दिल्ली में करीब 10 लाख आवारा कुत्ते हैं।
👉 इनके लिए शेल्टर बनाने पर लगभग 10 से 15 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
👉 हर हफ्ते के खाने के लिए ही 5 करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी।
👉 देखरेख के लिए डेढ़ से दो लाख कर्मचारियों की भर्ती करनी पड़ेगी।

“इतना बड़ा प्रोजेक्ट सरकार और नगर निगम के बस की बात ही नहीं है। यह फैसला प्रैक्टिकली नामुमकिन है,” उन्होंने कहा।

"जब खतरा ही नहीं, तो कार्रवाई क्यों?"

पियूष सोनी ने बताया कि दिल्ली, राजस्थान और गोवा जैसे राज्यों में 2022 से 2025 तक जीरो रेबीज़ केस दर्ज हुए हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब आंकड़े साफ बताते हैं कि कोई खतरा नहीं है, तो फिर कुत्तों को पकड़ने और कैद करने जैसा कदम क्यों उठाया जा रहा है?

असली समाधान क्या है?

उन्होंने कहा कि अगर वास्तव में डॉग बाइट्स रोकने हैं, तो सबसे आसान और कारगर तरीका है — सभी कुत्तों का एंटी-रेबीज़ वैक्सीनेशन।
लेकिन सरकार इस बुनियादी जिम्मेदारी को पिछले 10 सालों से टालती आ रही है। अपनी लापरवाही छिपाने के लिए अब आवारा कुत्तों को दोषी ठहराना आसान तरीका बना दिया गया है।

असली खतरा कहां से है?

सोनी ने आंकड़े रखते हुए कहा कि भारत में 2022 में हर दिन 177 चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज केस और 106 चाइल्ड रेप केस दर्ज हुए। यानी हर घंटे 4 बच्चे यौन शोषण का शिकार हुए।
“तो असली खतरा बच्चों को कुत्तों से नहीं, बल्कि समाज के दरिंदों से है,” उन्होंने सवाल उठाया।

डॉग बाइट्स के पीछे असली वजहें?

विदेशी नस्लों के पालतू कुत्ते – जिन्हें शो-ऑफ के लिए पाला जाता है, लेकिन संभाला नहीं जाता। इसके लिए डॉग्स की सेल्स परचेस बंद होनी चाहिए और ब्रीडिंग पर भी रोक लगाई जानी चाहिए। हम विदेशी नस्लों को बुरा नहीं मानते क्योंकि वह भी बेजुबान है लेकिन यह ब्रीड्स लोगों से संभाली नहीं जाती हो कई बार लोग उनको बेघर कर देते हैं।

डॉग रीलोकेशन – कॉलोनियों से पकड़कर गरीब मोहल्लों में छोड़ना। डॉग को रीलोकेट करने से नई जगह पर वह खाना ढूंढने में असफल रहता है और लोग भी उसके साथ बुरा बर्ताव करते हैं इससे कुत्ता डरा और असुरक्षित महसूस करता है और एग्रेसिव होकर काट लेता है।

"कुत्ते हमारे इकोसिस्टम का हिस्सा हैं"

अंत में पियूष सोनी ने कहा कि कुछ घटनाओं को आधार बनाकर पूरे सिस्टम को बदल देना किसी भी तरह से सही नहीं है।
“सुप्रीम कोर्ट को इस फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।”

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