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काशी का दुर्ग विनायक मंदिर : गणेश जी का प्राचीन पीठ, जहां मिलता है मनोकामनापूर्ति का आशीर्वाद


वाराणसी। गंगा किनारे बसी संसार की प्राचीनतम नगरी काशी अपनी आध्यात्मिक आभा, गंगा घाटों, खान-पान, मलमल और रेशम के कपड़ों के साथ-साथ प्राचीन मंदिरों के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। इन्हीं मंदिरों में से एक है दुर्ग विनायक मंदिर, जो भगवान गणेश के प्रमुख पीठों में गिना जाता है। यहां दर्शन-पूजन से भक्तों को मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद मिलता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव के पुत्र गणेश जी के काशी में कुल 67 पीठ हैं। इनमें 11 गणेश पीठ और 56 विनायक पीठ सम्मिलित हैं। प्रत्येक पीठ का अपना विशिष्ट महत्व है। 56 विनायकों में से एक है दुर्ग विनायक, जो दुर्गाकुंड क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर दुर्गाकुंड के दक्षिण कोने में स्थित है, जहां साक्षात् दुर्ग विनायक विराजमान हैं।
श्रद्धालुओं की मान्यता है कि दुर्ग विनायक के दर्शन और पूजा-अर्चना से सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। विशेषकर कलयुग में, देवी काली और विनायक की संयुक्त पूजा से तत्काल फल प्राप्त होने की बात कही जाती है। गणेश चतुर्थी के अवसर पर यहां विशेष धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन सुबह 5 बजे मंगला आरती के साथ मंदिर के द्वार खुलते हैं। इसके बाद वैदिक विद्वान गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करते हैं और दूर्वा से गणपति का सहस्त्रार्चन किया जाता है। दिनभर भक्त भगवान गणेश को दूर्वा, फूल, फल और प्रसाद अर्पित करते हुए दर्शन करते हैं।



गणेश चतुर्थी के अलावा, प्रत्येक मासिक चतुर्थी को भी यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। इस दिन मंदिर का भव्य श्रृंगार किया जाता है और विनायक का दिव्य रूप देखकर भक्त भावविभोर हो जाते हैं। आज के दिन भी मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा। लंबी कतारों में खड़े श्रद्धालु घंटों प्रतीक्षा कर दुर्ग विनायक के दर्शन करते रहे।



दुर्ग विनायक से जुड़ी एक विशेष मान्यता यह भी है कि किसी नई नौकरी, व्यापार, परियोजना या किसी बड़े कार्य की शुरुआत से पहले यहां पूजा करने से सफलता सुनिश्चित होती है। यही कारण है कि स्थानीय लोग किसी भी नए उपक्रम से पहले विनायक जी के दरबार में हाजिरी देना नहीं भूलते।


पुराणों में वर्णित है कि काशी की रक्षा का भार गणेश जी के विनायक रूप पर था। देवसेना के नायक के रूप में वे न केवल देवताओं के रक्षक थे, बल्कि काशी की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की भी सुरक्षा करते थे। इसीलिए, आज भी काशीवासी और देशभर से आने वाले श्रद्धालु, हर शुभ कार्य से पूर्व “श्री गणेशाय नमः” के साथ दुर्ग विनायक की शरण में जाते हैं, ताकि उनके सभी कार्य निर्विघ्न पूर्ण हों।

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