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बीमा कंपनियों का दोहरा रवैया: जनता की जेब पर डाका और सेहत से खिलवाड़

📰 बीमा कंपनियों का दोहरा रवैया: जनता की जेब पर डाका और सेहत से खिलवाड़

आज के दौर में स्वास्थ्य बीमा को लोग अपनी ज़रूरत और सुरक्षा कवच मानते हैं। प्राइवेट हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां अपने विज्ञापनों में बड़े-बड़े वादे करती हैं—“बीमारी में हम आपके साथ हैं”, “24 से 48 घंटे का हॉस्पिटलाइजेशन और आपका क्लेम पक्का”। लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट है।

ज़रा सोचिए—एक मरीज़ डॉक्टर की सलाह पर अस्पताल में भर्ती होता है। डॉक्टर मानते हैं कि इलाज के लिए हॉस्पिटल में एडमिशन ज़रूरी है। लेकिन क्लेम का समय आते ही बीमा कंपनी का रवैया बदल जाता है। जवाब आता है—
"आपका इलाज तो घर पर भी हो सकता था, आपको हॉस्पिटल में भर्ती होने की ज़रूरत ही नहीं थी।"

क्या यह साफ़ तौर पर दोहरे चरित्र (Double Standards) का उदाहरण नहीं है?
एक तरफ़ पॉलिसी लेते समय यह शर्त रखी जाती है कि 24 से 48 घंटे भर्ती रहना अनिवार्य है, दूसरी तरफ़ जब आप शर्त पूरी कर देते हैं तो बहाना बना कर क्लेम ठुकरा दिया जाता है।

इस पूरे खेल में भोली-भाली आम जनता सबसे बड़ा शिकार है। लोग हर साल समय पर प्रीमियम भरते हैं, पॉलिसी लॅप्स होने के डर से एक दिन की देरी नहीं करते, लेकिन असली वक्त आने पर उन्हें टाल दिया जाता है। मरीज और उसके परिवार को आर्थिक व मानसिक दोनों तरह से नुकसान झेलना पड़ता है।

सवाल यह है कि—

क्या बीमा कंपनियां सिर्फ़ प्रीमियम वसूलने के लिए हैं?

डॉक्टर की सलाह को क्यों नज़रअंदाज़ किया जाता है?

क्या IRDAI (बीमा नियामक प्राधिकरण) ऐसे मामलों में सख़्त कार्रवाई करेगा?


अब समय आ गया है कि इस बीमा के खेल को उजागर किया जाए और जनता को उनके हक़ की लड़ाई के लिए जागरूक किया जाए।
अगर आप भी ऐसे अनुभव से गुज़रे हैं तो इसे दबाएं नहीं, अपनी आवाज़ उठाएं।

✍️ – Alok dalmia sri ganganagar rajasthan
(सदस्य – All India Media Association, ID: 188450)
📧 alokdalmia007@gmail.com

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