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प्रथम ब्रह्मोत्सव, इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,जन्माष्टमी समारोह (9-17 अगस्त 2025) की अनंत शुभकामनाएं । आज त्रिकुटा पर्वत" से अद्भुत प्राकृतिक पावन दिव्य पिंडी स्वरूप जगजननी माँ वैष्णोदेवी जी के प्रातः काल श्रृंगार के आलौकिक दर्शन करे ।


प्रथम ब्रह्मोत्सव, इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,जन्माष्टमी समारोह (9-17 अगस्त 2025) की अनंत शुभकामनाएं ।

आज त्रिकुटा पर्वत" से अद्भुत प्राकृतिक पावन दिव्य पिंडी स्वरूप जगजननी माँ वैष्णोदेवी जी के प्रातः काल श्रृंगार के आलौकिक दर्शन करे ।

भारतीय संस्कृति की परिचायक, सभी भारतीय भाषाओं की जननी, संसार भर की भाषाओं में प्राचीनतम और समृद्धतम देवभाषा विश्व संस्कृत दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं साथ साथ सभी साहित्य एवं पुस्तक प्रेमियों को पुस्तक प्रेमी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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ISKCON Mangalore Kulai | Balaram Jayanti Abhisheka | August 9, 2025 |

https://www.youtube.com/live/je0GLXhcRSI?si=75r5_xzBwlT1IXQx

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श्रीकृष्ण उन भक्तों की विशेष प्रशंसा करते हैं जो प्रचार-कार्य के लिए - खतरे उठाते हैं। वे तुम्हारा विशेष ध्यान रखेंगे और सदैव तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे क्योंकि तुम इस कार्य में गम्भीरता से सेवा करने का प्रयास कर रहे हो।

(श्रील प्रभुपाद,9 अगस्त 1972, अमोघ को पत्र )
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ए. सी. भक्तिवेदांत श्रील प्रभुपाद और हमारी गुरुपरंपरा की जय हो।"संदर्भ: भगवद् गीता 4.1- 4.3। क्या आपको पता है अर्जुन से भी पहले भगवत गीता का ज्ञान करोडो वर्ष पहले सूर्य देव को दिया गया था?

भगवद गीता यथारूप - गुरु-परम्परा , Bhagavad Gita As It Is Hindi - Guru Parampara
गुरु-परम्परा-

Bhagavad Gita 4.1 »
परम भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-मैने इस शाश्वत ज्ञानयोग का उपदेश सूर्यदेव, विवस्वान् को दिया और विवस्वान् ने मनु और फिर इसके बाद मनु ने इसका उपदेश इक्ष्वाकु को दिया।

Bhagavad Gita 4.2 »

हे शत्रुओं के दमन कर्ता! इस प्रकार राजर्षियों ने सतत गुरु परम्परा पद्धति द्वारा ज्ञान योग की विद्या प्राप्त की किन्तु अनन्त युगों के साथ यह विज्ञान संसार से लुप्त हो गया प्रतीत होता है।

Bhagavad Gita 4.3 »

उसी प्राचीन गूढ़ योगज्ञान को आज मैं तुम्हारे सम्मुख प्रकट कर रहा हूँ क्योंकि तुम मेरे मित्र एवं मेरे भक्त हो इसलिए तुम इस दिव्य ज्ञान को समझ सकते हो।

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एवं परम्पराप्राप्तम् इमं राजर्षयो विदुः (भगवद्गीता ४.२) | यह भगवद्गीता यथारूप इस गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त हुई है –
१. श्रीकृष्ण ,२. ब्रह्मा ,३. नारद , ४. व्यास ५. मध्व,६. पद्मनाभ ,७. नृहरि ,८. माधव
९. अक्षोभ्य,१०.जयतीर्थ , ११.ज्ञानसिन्धु , १२.दयानिधि ,१३.विद्यानिधि , १४.राजेन्द्र
१५.जयधर्म ,१६.पुरुषोत्तम , १७.ब्रह्मण्यतीर्थ १८. व्यासतीर्थ,१९.लक्ष्मीपति,२०.माधवेन्द्रपुरी
२१.ईश्र्वरपुरी (नित्यानन्द, अद्वैत),२२.श्रीचैतन्य महाप्रभु
२३.रूप(स्वरूप, सनातन),२४.रघुनाथ, जीव
२५.कृष्णदास,२६.नरोत्तम,२७.विश्र्वनाथ, २८.(बलदेव) जगन्नाथ,२९.भक्तिविनोद,३०.गौरकिशोर
३१.भक्तिसिद्धान्त सरस्वती,३२.ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद और अब उनके शिष्यों के माध्यम से हम तक।

रथ सप्तमी जिसे सूर्य देव के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है ,उसी रथ सप्तमी (7 फरवरी 2022) के दिन से मैंने इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,से भगवत गीता पढ़ना शुरू किया था।
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Bhagavad Gita Verse Of the Day : Chapter 15, Verse 17

उत्तम: पुरुषस्त्वन्य: परमात्मेत्युदाहृत: |
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वर: || 17||

उत्तमः-परम; पुरुषः-दिव्य व्यक्तित्व; तु–लेकिन; अन्यः-अतिरिक्त; परम-आत्मा-परमात्मा; इति–इस प्रकार; उदाहृतः-कहा जाता है; यः-जो; लोक-त्रयम्-तीन लोकों में; आविश्य-प्रवेश करके; बिभिर्ति-पालन करना; अव्ययः-अविनाशी; ईश्वरः-नियन्ता।

Translation
BG 15.17: इनके अतिरिक्त एक परम सर्वोच्च व्यक्तित्व है जो अक्षय परमात्मा है। वह तीनों लोकों में अपरिवर्तनीय नियंता के रूप में प्रवेश करता है और सभी जीवों का पालन पोषण करता है।

Commentary
संसार और आत्मा का निरूपण करने के पश्चात अब श्रीकृष्ण भगवान के संबंध में चर्चा करते हैं जो संसार तथा नश्वर और अविनाशी जीवों से परे हैं। शास्त्रों में उन्हें परमात्मा के नाम से पुकारा जाता है जिसका अर्थ परम आत्मा है। 'परम' विशेषण स्पष्ट करता है कि परमात्मा आत्मा या जीवात्मा से भिन्न है। यह श्लोक उन अद्वैतवादी दार्शनिकों के दावे को अस्वीकृत करता है, जो जीवात्मा को भी परम आत्मा मानते हैं। जीवात्मा अणु है और यह केवल अपनी देह में ही व्याप्त रहती है जबकि परमात्मा विभु हैं और सब प्राणियों के हृदय में निवास करते हैं। वे उनके कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और उचित अवसर पर उसका फल प्रदान करते हैं। वे जीवात्मा के साथ जन्म-जन्मांतर तक रहते हैं चाहे वह कोई भी शरीर धारण करे। अगर जीवात्मा निश्चित समय के लिए कुत्ते की योनि में जन्म लेती है तब भी परमात्मा उसके साथ रहते हैं और पूर्व कर्मों के अनुसार उसे फल देते हैं।

संसार में कुत्तों के भाग्य में भी विषमता देखने को मिलती है। कुछ आवारा कुत्ते भारत की गलियों में नारकीय जीवन व्यतीत करते हैं जबकि अन्य पालतू कुत्ते संयुक्त राज्य अमेरिका में विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। यह विषमता पूर्व संचित कर्मों के परिणामस्वरूप पायी जाती है और परमात्मा ही हमें हमारे कर्मों का प्रतिफल प्रदान करते हैं और प्रत्येक जन्म में आत्मा जिस भी योनि में जाती है वे उसके साथ रहते हैं। परमात्मा जो सभी जीवों के हृदय में निवास करते हैं वे अपने चतुर्भुजधारी क्षीरोदकशायी विष्णु के साकार रूप में भी प्रकट रहते हैं। हिन्दी में एक सुप्रसिद्ध कहावत है-"मारने वाले के दो हाथ, बचाने वाले के चार हाथ।" अर्थात किसी को मारने वाले के दो हाथ होते हैं लेकिन उसकी रक्षा करने वाले के चार हाथ होते हैं। यह चतुर्भुज धारी स्वरूप परमात्मा या परम आत्मा के संदर्भ में कहा जाता है।
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हरे कृष्ण इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,की ओर से मंगल आरती सुबह @ 4:30 बजे प्रतिदिन , महामंत्र जप सत्र सुबह @ 5:00 बजे प्रतिदिन ,दर्शन आरती प्रातः@ 7:10 बजे प्रतिदिन, भागवतम् क्लास संध्या काल@7:30 बजे प्रतिदिन, ऑनलाइन ज़ूम लिंक के माध्यम से शामिल हो।

ज़ूम लिंक: https://t.ly/temple

मीटिंग आईडी: 494 026 3157

पासवर्ड : 108

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इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,भगवद् गीता Level-1 बैच 47 (Hindi) Online Class यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक!

https://youtube.com/playlist?list=PLKU6ikvAHEy4nhOfwGAa8v1FxmX1924Ur&si=wU9axplDIfIZHyXo

इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर,भगवद् गीता Level 2 बैच 45 (Hindi ) Online Class यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक -

https://youtube.com/playlist?list=PLKU6ikvAHEy4N6I3fTQT8bCpcUsoq3xaP&si=ZgUsjPqDjDzQrJTc

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इस्कॉन® कुलाई, मैंगलोर, द्वारा अयोजित श्रीमद्भागवत गीता Advance Level 4 Class की मेरी Group -A की 11वीं प्रस्तुति शनिवार 4 जनवरी 2025 को संपन्न हुई !

Question- कृष्ण के विश्व-रूप की प्रकृति और अर्जुन द्वारा इसे देखने की इच्छा के कारणों की व्याख्या करें। उपदेश के लिए इसके महत्व पर चर्चा करें। अपने उत्तर में भगवद्गीता अध्याय 11 से प्रासंगिक श्लोकों और तात्पर्यों का संदर्भ लें।

जिसका यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक दिया गया है। मेरी प्रस्तुति वीडियो में समय 01:11:59 से है ! प्रसूति देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

https://youtu.be/vRoIbz6isRk

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महामंत्र -हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम , राम राम हरे हरे।।
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आज त्रिकुटा पर्वत" से अद्भुत प्राकृतिक पावन दिव्य पिंडी स्वरूप जगजननी माँ वैष्णोदेवी जी के प्रातः काल श्रृंगार के आलौकिक दर्शन करे ।
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हार्दिक शुभकामनाएं,
Jeetendra Sharan
(कायस्थ परिवार)

https://aimamedia.org/newsdetails.aspx?nid=253501&y=1

More Information On-
https://omtext.wixsite.com/inaryavart
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