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Medical Representative Day ( चिकित्सा प्रतिनिधि दिवस) की हार्दिक शुभकामनाएँ।

चिकित्सा प्रतिनिधि दिवस की शुभकामनाएँ। साधारण लोग सोचते हैं कि उन्हें क्या मिल रहा है, असाधारण लोग सोचते हैं कि वे क्या बन रहे हैं... आप एक असाधारण MR बनें।कभी-कभी सबसे अच्छी दवा धूप, ताजी हवा और सकारात्मक बने रहना होती है।

अपनी आध्यात्मिक यात्रा से पहले, प्रभुपाद, जिन्हें उस समय अभय चरण के नाम से जाना जाता था, अपने पारिवारिक मित्र कार्तिक बोस के स्वामित्व वाली एक दवा कंपनी में प्रबंधक के रूप में काम करते थे।

एस्टेब्लिशिंग प्रयाग फार्मेसी:

1923 में उन्होंने इलाहाबाद में अपना खुद का व्यवसाय, प्रयाग फार्मेसी, शुरू किया, जिसे वृज वृंदावन के अनुसार उनके पिता के मित्र ने समर्थन दिया था।

चुनौतियाँ और ऋण:

समय के साथ, प्रभुपाद को अपने व्यापारिक प्रयासों में चुनौतियों का सामना करना पड़ा और अंततः उन पर कुछ कर्ज हो गया।

फार्मेसी सौंपना:

कर्ज की स्थिति से निपटने के लिए उन्होंने प्रयाग फार्मेसी को अपने मित्र डॉ. कार्तिक चंद्र बोस को सौंप दिया।

आध्यात्मिक जीवन पर ध्यान केन्द्रित करना:

इसके बाद, प्रभुपाद अपने गुरुभाइयों से पुनः जुड़े और बम्बई में गौड़ीय मठ केंद्र की स्थापना में सक्रिय रूप से शामिल हो गए।

निर्देश प्राप्त करना:

उन्हें अपने गुरु श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती से एक पत्र मिला, जिसमें उन्हें अंग्रेजी में प्रचार करने का निर्देश दिया गया था, जिससे आध्यात्मिक सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और मजबूत हो गई।

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कई बार महान् व्यक्ति के संग से अन्य भी महान् प्रतीत होते हैं। सूर्य में अपार ऊष्मा और प्रकाश है और सूर्य प्रकाश की महानता को प्रकाशित करने के कारण अंधेरी रात में चन्द्रमा भी महान् दिखाई देता है। वास्तव में चन्द्रमा एक अंधकारयुक्त और ठण्डा ग्रह है किन्तु सूर्य के संग के कारण उसे भी महान स्वीकार कर लिया जाता है।

जाह्नवा को पत्त्र, 1 अगस्त 1973

(ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद )

https://aimamedia.org/newsdetails.aspx?nid=479359


पुरा पत्र पढ़ें-

https://vanisource.org/wiki/730801_-_Letter_to_Jahnava_written_from_Bhaktivedanta_Manor,_UK

मेरी प्रिय जाह्नवा दासी,

कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं आपके दिनांक 20 अगस्त, 1973 के पत्र की प्राप्ति की सूचना देता हूँ।

आपने मेरी प्रशंसा में बहुत अच्छी बातें लिखी हैं, लेकिन मुझे लगता है कि मेरे गुरु महाराज महान हैं, मैं महान नहीं हूँ, वे महान हैं। इसलिए कभी-कभी महानता की संगति से व्यक्ति महान प्रतीत होता है। जैसे सूर्य में अपार ऊष्मा और प्रकाश है और सूर्य के प्रकाश की महानता को परावर्तित करके, रात्रि के अंधेरे में चंद्रमा भी महान प्रतीत होता है, लेकिन वास्तव में चंद्रमा स्वभाव से ही अंधकारमय और ठंडा होता है, लेकिन सूर्य की संगति से वह महान माना जाने लगा है, यही वास्तविक स्थिति है। इसलिए मैं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ कि आप मेरे गुरु महाराज की सराहना कर रहे हैं, जो पूरे विश्व में कृष्णभावनामृत का प्रचार करना चाहते थे, वे बहुत महान हैं।

मुझे आशा है कि यह पत्र आपको अच्छे स्वास्थ्य में मिलेगा।

आपका सदैव शुभचिंतक,

A.C. Bhaktivedanta Swami

Srimati Jahnava Devi Dasi

439 Henry Street, Brooklyn New York, 11231 America

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Bhagwad Geeta Verse Of the Day: Chapter 10 : श्रीभगवान् का ऐश्वर्य श्लोक 10 . 6

महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा |
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः || ६ ||

महा-ऋषयः – महर्षिगण; सप्त – सात; पूर्वे – पूर्वकाल में; चत्वारः – चार; मनवः – मनुगण; तथा – भी; मत्-भावाः – मुझसे उत्पन्न; मानसाः – मन से; जाताः – उत्पन्न; येषाम् – जिनकी; लोके – संसार में; इमाः – ये सब; प्रजाः – सन्तानें, जीव |

भावार्थ

सप्तर्षिगण तथा उनसे भी पूर्व चार अन्य महर्षि एवं सारे मनु (मानवजाति के पूर्वज) सब मेरे मन से उत्पन्न हैं और विभिन्न लोकों में निवास करने वाले सारे जीव उनसे अवतरित होते हैं |

तात्पर्य

भगवान् यहाँ पर ब्रह्माण्ड की प्रजा का आनुवंशिक वर्णन कर रहे हैं | ब्रह्मा परमेश्र्वर की शक्ति से उत्पन्न आदि जीव हैं, जिन्हें हिरण्यगर्भ कहा जाता है | ब्रह्मा से सात महर्षि तथा इनसे भी पूर्व चार महर्षि – सनक, सनन्दन, सनातन तथा सनत्कुमार – एवं सारे मनु प्रकट हुए | ये पच्चीस महान ऋषि ब्रह्माण्ड के समस्त जीवों के धर्म-पथप्रदर्शक कहलाते हैं | असंख्य ब्रह्माण्ड हैं और प्रत्येक ब्रह्माण्ड में असंख्य लोक हैं और प्रत्येक लोक में नाना योनियाँ निवास करती हैं | ये सब इन्हीं पच्चीसों प्रजापतियों से उत्पन्न हैं | कृष्ण की कृपा से एक हजार दिव्य वर्षों तक तपस्या करने के बाद ब्रह्मा को सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हुआ | तब ब्रह्मा से सनक, सनन्दन, सनातन तथा सनत्कुमार उत्पन्न हुए | उनके बाद रूद्र तथा सप्तर्षि और इस प्रकार भगवान् की शक्ति से सभी ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों का जन्म हुआ | ब्रह्मा को पितामह कहा जाता है और कृष्ण को प्रपितामह – पितामह का पिता | इसका उल्लेख भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय (११.३९) में किया गया है |
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भगवद् गीता Level-1 बैच 47 (Hindi) Online Class यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक!

https://youtube.com/playlist?list=PLKU6ikvAHEy4nhOfwGAa8v1FxmX1924Ur&si=wU9axplDIfIZHyXo

भगवद् गीता Level 2 बैच 45 (Hindi ) Online Class यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक -

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इस्कॉन मंगलुरु द्वार अयोजित श्रीमद्भागवत गीता Advance Level 4 Class की मेरी Group -A की 11वीं प्रस्तुति शनिवार 4 जनवरी 2025 को संपन्न हुई !

Question- कृष्ण के विश्व-रूप की प्रकृति और अर्जुन द्वारा इसे देखने की इच्छा के कारणों की व्याख्या करें। उपदेश के लिए इसके महत्व पर चर्चा करें। अपने उत्तर में भगवद्गीता अध्याय 11 से प्रासंगिक श्लोकों और तात्पर्यों का संदर्भ लें।

जिसका यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक दिया गया है। मेरी प्रस्तुति वीडियो में समय 01:11:59 से है ! प्रसूति देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

https://youtu.be/vRoIbz6isRk

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इस्कॉन मंगलुरु द्वारा अयोजित मेरी भक्ति शास्त्री कोर्स की चल रही कक्षा का यूट्यूब रिकॉर्डिंग लिंक
-https://youtube.com/playlist?list=PLKU6ikvAHEy4HvCkJ8HBhNQe2A_45t18l&si=pVPcZDabmTy46in0

महामंत्र -हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम , राम राम हरे हरे।।

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हार्दिक शुभकामनाएं,
Jeetendra Sharan
(कायस्थ परिवार)

https://aimamedia.org/newsdetails.aspx?nid=253501&y=1

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