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पिपलोदी स्कूल हादसा: सात मासूमों की मौत, लेकिन सवालों के जवाब अब भी अधूरे! प्राइवेट स्कूलों से हर साल भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र, तो सरकारी स्कूल क्यों छूटे?

झालावाड़:
राजस्थान के झालावाड़ जिले के मनोहर थाना ब्लॉक के पिपलोदी गांव में सरकारी स्कूल की छत गिरने से हुए दर्दनाक हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। इस हादसे में 7 छात्रों की मौत हो गई और 22 बच्चे घायल हुए हैं। घटना के बाद पूरे प्रशासनिक ढांचे की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।

सरकारी स्कूल ‘सुरक्षित’ सूची में था फिर भी हादसा!
जिला कलेक्टर अजय प्रताप सिंह ने कहा कि यह स्कूल “जर्जर भवनों” की सूची में नहीं था। जबकि जानकारी के अनुसार, यह भवन लगभग 40 साल पुराना था। शिक्षा सचिव कृष्ण कुणाल द्वारा मानसून पूर्व जारी परिपत्र में निर्देश दिया गया था कि कमजोर भवनों में पढ़ाई न कराई जाए। फिर भी इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?

जिम्मेदारी से बचते अधिकारी, बलि का बकरा बने शिक्षक
प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए कार्यवाहक प्रधानाध्यापक सहित 4 शिक्षकों को निलंबित कर दिया है। मगर सवाल उठता है कि क्या सिर्फ शिक्षक ही जिम्मेदार हैं? क्या ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर के अधिकारी निरीक्षण में विफल नहीं रहे?

प्राइवेट स्कूलों से सख्ती, सरकारी स्कूल लापरवाह क्यों?
अजमेर के स्कूल संचालक सूबे सिंह के अनुसार, निजी स्कूलों को हर साल PWD से भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र लेना होता है। प्रमाण पत्र जमा नहीं कराने पर स्कूल की मान्यता रद्द कर दी जाती है। लेकिन सरकारी स्कूलों में यह प्रक्रिया लागू नहीं है। सवाल है — दोहरी नीति क्यों?

मंत्री दिलावर पर इस्तीफे का दबाव
हालाँकि शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने घटना पर दुख जताया है, पर राजनैतिक और सामाजिक संगठनों की मांग है कि नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस घटना पर संवेदना प्रकट की है।

क्या सरकार में हिम्मत है?
यदि सरकार पारदर्शी है तो प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों के कमजोर भवनों की सूची सार्वजनिक करे और यह सुनिश्चित करे कि हर सरकारी स्कूल का स्ट्रक्चरल ऑडिट हर वर्ष PWD से कराया जाए।

यह सिर्फ हादसा नहीं, व्यवस्था की विफलता है।
अब सवाल उठाना ज़रूरी है — अगला हादसा कब और कहां होगा?

सुरेश जांगिड

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