logo

हमारे बच्चे और फोन

रील्स की गिरफ्त में युवा पीढ़ी : किताबें, खेल और संस्कृति को खोता समाज

आज के दौर में मोबाइल फोन और इंटरनेट मानव जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं। डिजिटल युग में नई तकनीक ने जीवन को सहज और सरल अवश्य बनाया है, लेकिन इसका दूसरा पहलू कहीं ज्यादा खतरनाक रूप में सामने आ रहा है। विशेषकर रील्स और शॉर्ट वीडियो का चलन युवाओं को तेजी से अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। नतीजा यह है कि युवा वर्ग शिक्षा, खेल और सामाजिक जीवन से दूर होता जा रहा है।

एक समय था जब बच्चों और युवाओं का दिन खेल के मैदानों में बीतता था, गांवों के अखाड़ों में कुश्ती की हुंकार गूंजती थी, शामें पाठशालाओं की घंटियों से सजती थीं। मगर आज सुबह की शुरुआत मोबाइल स्क्रीन के स्क्रॉल से होती है और रात की नींद रील्स की दुनिया में डूबकर खत्म होती है। घंटों-घंटों मोबाइल पर उंगलियां चलती हैं, लेकिन जीवन का वास्तविक विकास वहीं थम जाता है।

रील्स की दुनिया में खोए युवा न केवल अपनी पढ़ाई से दूरी बना रहे हैं बल्कि उनका मानसिक और शारीरिक विकास भी प्रभावित हो रहा है। आंखों की रोशनी कमजोर हो रही है, नींद का संतुलन बिगड़ रहा है और एकाग्रता पूरी तरह भंग हो चुकी है। बच्चों के हाथों से किताबें छिनती जा रही हैं और दिमाग में केवल चटपटे, दिखावटी वीडियो का जहर घुल रहा है।

सबसे गंभीर असर हमारे पारंपरिक खेलों पर पड़ रहा है। कभी गांव-गांव में गूंजने वाली कुश्ती, कबड्डी और दंगल की आवाज अब सुनाई नहीं देती। बच्चे अखाड़ों की मिट्टी छोड़ मोबाइल की स्क्रीन पर समय गवां रहे हैं। मैदान सूने हो गए हैं, और स्वस्थ शरीर के स्थान पर थके हुए, तनावग्रस्त और दिशाहीन युवा समाज में बढ़ रहे हैं।

यह बदलाव सिर्फ व्यक्तिगत जीवन को नहीं, बल्कि पूरे समाज को खोखला कर रहा है। किताबों से दूरी ज्ञान की कमी को जन्म दे रही है, खेलों से दूरी शरीर को कमजोर बना रही है और सोशल मीडिया का दिखावा युवाओं को वास्तविकता से दूर कर रहा है।

समय की मांग है कि समाज, परिवार और शैक्षिक संस्थान मिलकर इस स्थिति पर गंभीर मंथन करें। बच्चों को मोबाइल के सीमित और रचनात्मक उपयोग के लिए प्रेरित करना होगा। उन्हें फिर से खेल के मैदान से जोड़ना होगा, किताबों की ओर लौटाना होगा और जीवन के असली लक्ष्यों की ओर मार्गदर्शन देना होगा।

सरकार और प्रशासन को भी चाहिए कि वे शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म पर कड़े नियम लागू करें और युवाओं के लिए प्रेरक अभियान चलाएं। जब युवा पीढ़ी अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाएगी, तभी देश और समाज का भविष्य मजबूत और उज्ज्वल बन सकेगा।

रील्स के मोह से बाहर आकर जब युवा फिर से किताबों और खेलों की दुनिया में लौटेंगे, तभी असली विकास की तस्वीर उभरेगी। यह सिर्फ समय की जरूरत नहीं, बल्कि समाज के अस्तित्व का सवाल है।

31
349 views