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परमार्थ वैदिक गुरुकुल, कण्वाश्रम, कोटद्वार में दस दिवसीय सरल संस्कृत सम्भाषण शिविर का समापन किया

हरिद्वार से रोहित वर्मा की रिपोर्ट -
परमार्थ वैदिक गुरुकुल, कण्वाश्रम, कोटद्वार में दस दिवसीय सरल संस्कृत सम्भाषण शिविर का समापन किया गया। छात्रों को सरल पद्धति से संस्कृत सिखाने के उद्देश्य से यह शिविर संस्कृत भारती, कोटद्वार एवं परमार्थ वैदिक गुरुकुल, कण्वाश्रम के संयुक्त तत्वावधान में कण्वाश्रम में हीआयोजित किया गया ।

समापन कार्यक्रम में डॉ. रमाकांत कुकरेती, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य एवं संस्कृत भारती कोटद्वार नगर अध्यक्ष, मुख्य अतिथि मनमोहन काला, मुख्य शिक्षक कुलदीप मैन्दोला, मनमोहन नौटियाल प्रधानाचार्य, परमार्थ वैदिक गुरुकुल, राकेश कंडवाल योग शिक्षक राजकीय इंटर कॉलेज कांडाखाल, सिद्धार्थ नैथानी, प्रशान्त जोशी , विकास, अंबेश पन्त, प्रवीण थापा, स्वेता रावत, सुदीप थपलियाल , सुभाष, रावताचार्य एवं गुरुकुल के अध्यापक और 70 छात्र उपस्थित थे। छात्रों में वेदांत, अनिल, हनुगिरी, अनुराग, और दिव्यांश ने अपना दस दिवस का अनुभव भी साझा किया।

श्री मनमोहन काला ने कण्वाश्रम नाम तथा हरिद्वार नाम क्यों पडा इस पर विस्तार से बताया कि कण्व ऋषि की तपस्थली के नाम पर कण्वनगरी और कण्वाश्रम नाम तथा शकुन्तला पुत्र भरत के नाम पर भारत पडा उन्होंने कहा कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि के द्वारा बनाई गई पैडी हरकी पैड़ी के कारण हरिद्वार प्रसिद्ध नाम हुआ।

डा.रमाकान्तकुकरेती ने कहा कि किताबों से हमें सालभर के पाठ्यक्रम को पढकर सीखना होता है लेकिन संस्कृतभारती के अनुसार मात्र दस दिन में दो घण्टा यानि बीस घण्टे में हम संस्कृत सीख सकते हैं। अम्बेशपन्त नें कहा कि आज समाज संस्कृत की ओर देख रहा कि हमारी सारी विरासत इस भाषा में है और हमें यह भाषा आनी चाहिए इसलिए हमारे ऊपर जिम्मेदारी है कि हम संस्कृत को समाज तक पहुंचाये । प्रवीणथापा ने कहा कि संस्कृत ही संस्कृति की मूल है कण्वाश्रम की संस्कृति विश्वविख्यात रही है यह खुशी की बात है कि आज भी कण्वाश्रम में संस्कृत जीवित है ।

1981 में स्थापित, संस्कृत भारती संस्कृत को एक बोलचाल की भाषा के रूप में पुनर्जीवित और प्रोत्साहित करने में अग्रणी रही है। संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने के उद्देश्य से इस संगठन ने अपने अभिनव कार्यक्रमों के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुंच बनाई है।

संस्कृत भारती दुनिया भर में 10-दिवसीय संस्कृत संवाद शिविर आयोजित करती है, जिससे इस भाषा को प्रारंभिक स्तर के लोगों के लिए सरल बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त, यह पत्राचार ,पाठ्यक्रम, शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, गीता शिक्षण केंद्र, बच्चों के लिए बालकेंद्र और लोकप्रिय पत्रिका संभाषण संदेश का प्रकाशन भी करती है।

अब तक, इस संगठन ने 26 देशों में 4,500 केंद्रों के माध्यम से 1 करोड़ से अधिक व्यक्तियों को संस्कृत भाषा का प्रशिक्षण दिया है। इसने 10,000 से अधिक 'संस्कृत गृह' भी स्थापित किए हैं, जहाँ परिवार के सभी सदस्य केवल संस्कृत में ही संवाद करते हैं।

भारत में, कर्नाटक के मत्तूर और होसाहल्ली तथा मध्य प्रदेश के झीरी और मोहद सहित छह गाँव 'संस्कृत ग्राम' बन गए हैं, जहाँ सभी निवासी केवल संस्कृत भाषा का प्रयोग करते हैं।

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