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**प्रचंड गरीबी, बार डांसर की नौकरी और फिर कलम का कमाल – शुगफ्ता रफीक की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं**

मैं नीरज माहौर एक पोस्ट लिख रहा हूं, नीचे पत्रकारिता की भाषा में शुगफ्ता रफीक की यह कहानी प्रस्तुत है, जिसे आप AIMA Media या अपनी Instagram ID @navodaywalaneeraj पर पढ़ सकते हैं:

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✍️ *संवाददाता: नीरज माहौर, AIMA Media*
📲 *Instagram: @navodaywalaneeraj*

**बचपन गरीबी में बीता। पढ़ाई छूटी। पेट पालने के लिए बार डांसर बनीं। लेकिन किस्मत से ज्यादा भरोसा था मेहनत पर... और कलम ने ऐसा कमाल किया कि आज हैं बॉलीवुड की टॉप राइटर।**

शुगफ्ता रफीक – आज जिस नाम को इंडस्ट्री में एक सफल और प्रेरणादायक राइटर के रूप में जाना जाता है, उस नाम के पीछे संघर्षों की एक लंबी दास्तान छुपी है। ‘आशिकी-2’, ‘आवारापन’, ‘राज-3’, ‘मर्डर-2’ जैसी सुपरहिट फिल्मों की लेखिका शुगफ्ता का जीवन किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है।

उनके असली माता-पिता कौन थे, यह आज भी एक राज है। उन्हें गोद लिया था 60-70 के दशक की मशहूर अभिनेत्री सईदा खान ने। सईदा की शादी के बाद हालात ऐसे बिगड़े कि घर चलाने के लिए चीजें बेचनी पड़ीं। शुगफ्ता को कभी-कभी दूसरों के कपड़े पहनने पड़ते थे।

**7वीं के बाद पढ़ाई छोड़ी**, लेकिन मन में था अंग्रेजी सीखने का जज्बा। उन्होंने लाइब्रेरी से अंग्रेजी सीखी और धीरे-धीरे शब्दों की ताकत को समझा। राइटर बनने का सपना देखा, मगर रास्ते आसान नहीं थे। नौकरी नहीं मिली, तो डांसर बनीं। दुबई तक गईं, लेकिन दिल हमेशा फिल्मों में ही बसा रहा।

**मुंबई लौटीं, और 2006 में 'वो लम्हे' से शुरुआत की।** 2007 की फिल्म ‘आवारापन’ ने उन्हें पहचान दिलाई और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज वह 21 से ज्यादा फिल्मों की स्क्रिप्ट और डायलॉग लिख चुकी हैं।

**शब्दों से जंग जीतने वाली शुगफ्ता ने साबित किया – अगर इरादे मजबूत हों तो गरीबी, हालात और वक्त किसी की राह नहीं रोक सकते।**



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