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आधुनिकता और सभ्यता ने क्या छीना

बुजुर्ग कहीं भी जाते थे तो बढ़िया घर का बनाया #तम्बाकू #चमड़े की बनी #थैली में डालकर साथ लेकर चलते थे। ना #बीड़ी न #सिगरेट का झंझट। महिलाएं भी बहुतायत में छोटी सी डिब्बी में सुखा #सूंघने_वाला_तम्बाकू हमेशा साथ रखती थी।

वॉलेट की जगह #कपड़े_का_पोथिया हुआ करता था जिसमे ही कुछ रुपये इत्यादि रखे जाते थे। हमारे #भांडे अधिकतर गाम के ही #कुम्हार के बनाये हुये थे। अनाज भंडारण के बड़े #माट या तो कुम्हार बनाता था या #मुल्तानी_मिट्टी कागज और या #मिट्टी"_गोबर से खुद ही बनाये जाते थे बाद तक #बोरी_की_झालर बना ली जाती थी जिसमे अनाज भरके रखा जाता था, कुछ सम्पन्न लोग #बुखारी बना लेते थे अनाज भंडारण के लिए।

गाल में गलियों में #गन्ने के #छिलके (छोतकर) भी नहीं बचता था उसे कुम्हार ले जाते थे #गोबर को #पथवारे या #कुरड़ी में पहुंचा दिया जाता था। गालियां इतनी भी कीचड़ भरी नहीं थी। बड़े बड़े #जोहड़ थे जिनकी खुदाई ढूंग, पाने और कुनबे के हिसाब से सबके हिस्से आती थी। जलाने के लिए #ईंधन हो या घर बनाने के लिए लकड़ी ज्यादातर खुद ही के खेत खलिहान में तैयार होती थी।

जगह जगह #प्याऊ और #धर्मशाला सरकार नहीं हम #खुद बनाते थे। कुओं, बावड़ी, जोहड़, चौराहों पर भारी पेड़ लगाकर छाया बना दी जाती थी। आज भी जींद की तरफ निकलें तो जगह जगह खड़े पगोडे रूपी #बेटोडे और तूड़ी के #कूप देखने को मिलेंगे खेतों और #गितवाडों में जो #घोसे, थेपडी और तूड़ी के भंडारण के शानदार तरीके हैं। तब, टोकरी, छाबड़ी, झाले, गाड़ी, बाण, खाट, पलंग, रस्सी, कपड़ा, सब हम खुद ही तैयार करते थे।

आधुनिकता ने सभ्यता दी नहीं छीनी है, आत्मनिर्भरता खत्म की है। आज अगर हफ्ता भर एक इलाके में बिजली ना आये तो ना आटा मिलेगा न दूध दही और ना ही कपड़े धुलेंगे।

तब हम #आत्मनिर्भर थे आज नहीं है। सरकार और सभ्यता ने #हमारी_आत्मनिर्भरता_छीनी_है।

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