
समाज सेवा उत्थान समिति के संघर्ष से मिली नट बस्ती के लोगों को गरिमा से जीने का अधिकार
वाराणसी - राजातालाब तहसील के एक कोने में बसी है चार छोटी-छोटी बस्तियाँ है जिनका नाम क्रमशः नेवादा नट बस्ती, कल्लीपुर नट बस्ती, मिर्ज़ामुराद धारिकर बस्ती और मुशर बस्ती। ये बस्तियाँ कागज़ों पर तो है, लेकिन प्रशासनिक सुविधा की दौड़ में कहीं पीछे छूट गई है। उनके पास न तो पक्की सड़क है, न नल का साफ पानी, बिजली अक्सर सोती रहती और ज़मीन सिर्फ सपनों में थी।
लेकिन आज 19 जुलाई का दिन कुछ खास है। वह शनिवार, जब धूप तेज है, लेकिन उससे भी तेज था इन लोगों का हौसला।
एक आवाज़ उठी कि "अब नहीं झुकेंगे, अब नहीं रुकेंगे!"
बस्ती के बुज़ुर्गों ने अपनी चप्पलें पहन लीं, महिलाएँ बच्चों को गोद में उठाए तैयार थीं और युवाओं के हाथों में एक सपना था, सपना पहचान का, अधिकार का और सम्मान का।
वे पहुंचे राजातालाब तहसील, जहाँ SDM सम्पूर्ण समाधान दिवस पर लोगों की समस्याएँ सुन रहे थे। चार बस्तियों के लोग एक होकर आगे आए। उनके हाथों में एक ज्ञापन था, जिसमें दर्ज थीं:
• *भूमि आवंटन की माँग* , ताकि उनके बच्चों को स्थायी छत मिल सके।
• *घरोनी की जरूरत* , जिससे उनका नाम भी सरकारी कागज़ों में दर्ज हो।
• *सड़क, पानी और बिजली की गुहार* , ताकि उनके जीवन में भी रोशनी आए।
SDM साहब ने आश्वासन दिया कि "आपकी आवाज़ सुनी गई है, और जल्द ही कार्रवाई होगी।"
और आज जब लोग लौट रहे थे अपनी बस्ती की ओर, उनके चेहरे पर थकान नहीं थी, बल्कि एक चमक है, उम्मीद की चमक।
कहानी का अंत नहीं हुआ... बल्कि वह शुरुआत है एक नए अध्याय की, जहाँ विमुक्त और घुमंतू जनजातियाँ भी कह सकेंगी कि
"हम भी इस देश के बराबरी के नागरिक हैं!
इस सम्पूर्ण कार्य के लिए बस्ती के लोगों ने धन्यवाद दिया समाज उत्थान सेवा समिति के अनिल जी और उनके साथियों का जिन्होंने बस्ती के लोगों का बराबरी का हक दिलाने में संघर्ष किया।