logo

कफन मेरे, सिंदूर अपने पैसों से लाना, आप मुझे समझ नहीं पाए, अपनी ये भावनाएं पत्र में लिखकर लखीमपुर खीरी के कमलापुर की अंजली ने आत्महत्या कर ली

रिश्ते अब वैसे नहीं रहे जैसे कभी हुआ करते थे…
अब रिश्ता निभाया नहीं जाता, बस झेला जाता है।

शादी अब साथ निभाने का वादा नहीं, एक समझौता बनकर रह गया है जिसमें अगर दर्द ज़्यादा हो जाए, तो लोग छोड़ना ज़्यादा आसान समझते हैं, समझना नहीं।
पति अब जीवनसाथी नहीं, एक जज बन गया है… और पत्नी अब भावनाओं से भरी एक इंसान नहीं, बस एक ज़िम्मेदारी सी लगने लगी है।
जब कोई कहे “कफ़न मेरे लिए अपने पैसों से लाना, क्योंकि आपने मुझे कभी समझा ही नहीं”, तो समझ लीजिए कि वो रिश्ता बाहर से नहीं, अंदर से मर चुका है।

सास-बहू का रिश्ता तो जैसे घर के भीतर चलने वाला एक ‘अघोषित युद्ध’ बन चुका है।
बहू जब नए सपनों के साथ घर आती है, तो उसे बेटी नहीं समझा जाता उसे परखा जाता है, टोका जाता है, और कभी-कभी तो नीचा भी दिखाया जाता है।

सास को लगता है कि बहू ने उसका बेटा छीन लिया…
और बहू को लगता है कि उसका आत्मसम्मान हर रोज़ कुचला जा रहा है।
इन्हीं टकरावों में वो बेटा-पति बस झूलता रह जाता है न माँ को समझा पाता, न पत्नी को संभाल पाता।
रोज़ की बातें, ताने, चुप्पियाँ धीरे-धीरे एक इंसान को इस हद तक तोड़ देती हैं कि ज़हर भी कभी-कभी राहत लगने लगता है।

हम घर में रहते हुए भी किसी को अकेला महसूस करा देते हैं…
हमारे शब्द किसी के आत्मसम्मान पर ऐसे वार करते हैं, जो दिखाई तो नहीं देते, लेकिन अंदर तक ज़ख्मी कर देते हैं।
आज जिस महिला ने अपनी जान ले ली, वो सिर्फ एक पत्नी नहीं थी वो किसी की बहू भी थी, किसी की बेटी भी, किसी की माँ भी… लेकिन कोई भी उसे पूरी तरह समझ नहीं सका।
और यही आज के रिश्तों की सबसे बड़ी हार है।
हम सब साथ तो रहते हैं… लेकिन किसी के साथ नहीं होते।

अब समय आ गया है कि हम एक-दूसरे को निभाने की नहीं, समझने की कोशिश करें।
वरना कल को सिर्फ अफ़सोस बचेगा और एक खाली जगह, जहाँ कभी कोई अपने होने का हक़ चाहता था… पर मिला सिर्फ सन्नाटा।

11
1044 views