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रणविजय सिंह 'पुलुर' के उपन्यास "पराजित नायक" का हुआ विमोचन - कलमपुत्र काव्यकला ने किया आयोजन




मेरठ - कलमपुत्र काव्यकला मंच के तत्वावधान में दिनांक 6 जुलाई को होटल वेलकम ऑलिव, यूनिवर्सिटी रोड, साकेत मेरठ पर लेखक रणविजय सिंह ‘पुलुर’ के उपन्यास ‘पराजित नायक’ का विमोचन एक साहित्यिक समारोह में किया गया। मुख्य अतिथिं साथ मुलाकात श्री आरसी गुप्ता जी प्राचार्य एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज मेरठ
तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रबल प्रताप सिंह वरिष्ट पत्रकार, दिल्ली, ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ कवि श्री सत्यपाल सत्यम् जी मंच पर उपस्थित रहे तथा दीप प्रज्वलन का श्रीमती मीनाक्षी कौशल जी (प्रान्तीय उपाध्यक्ष सेवा भारती) ने किया।
उपन्यास की समीक्षा करते हुए श्री अशोक कुमार गौड ने कहा कि ‘पराजित नायक’ उपन्यास एक गृहस्थी के संचालन के लिए आम आदमी के संघर्ष को बयान करता है। व्यक्ति की कुछ गलत आदतों से होने वाली हानियांे व परिवार पर पड़ने वाले प्रभावों, कुसंगति के असर, जीवन में आने वाले झंझावतों आदि को रोचकता, व्यंग्यात्मक एवं सहज-सरल भाषा शैली में पाठको को आकर्षित करने के लिए यह उपन्यास प्रंशसनीय है।
उपन्यास के लेखक रणविजय सिंह ‘पुलुर’ ने उपन्यास के विषय में बताया कि ग्रामीण युवक बिना मार्गदर्शन के भी संघर्ष को सहारा बनाकर जीवन में सफल हो सकते हैं। यद्यपि इस संघर्ष काल मे उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। जय-पराजय की चिन्ता के बिना संघर्ष का दामन थामे रखने वाला आम आदमी ही नायक है। भले ही वह पराजित क्यों न हो जाये। उपन्यास के प्रकाशक चरणसिंह स्वामी ने कहा कि कोई व्यक्ति जीवन में कभी-कभी अपने स्वाभिमान को दरकिनार करके कुछ ऐसे समझोते कर लेता है, जिन्हें अपनाकर वह सफलता तो प्राप्त कर जाता है, लेकिन वे समझोते उसे जीवनभर टीस देते रहते हैं। उपन्यास का नायक जमुना भी ऐसी ही टीस को जीवनभर झेलता है। कार्यक्रम का संचालन व संयोजन चरणसिंह स्वामी द्वारा किया जाएगा।
कार्यक्रम में कई विशिष्टजनों का सान्निध्य प्राप्त हुआ, जिनमें सर्व श्री ज्ञान दीक्षित जी (दादा साहब फाल्के फिल्म फाउंडेशन, मुंबई अवार्डी), श्री संजय के. जी (उपन्यासकार), श्रीमती बीनू सिंह जी (लोक गायिका), श्रीमती रेखा वाधवा जी (समाजसेविका) प्रमुख हैं। सभी अतिथियों ने ‘पराजित नायक’ उपन्यास का अवलोकन करने के उपरान्त उपन्यास मंे निहित व्यंग्य व सामाजिक यथार्थ की भूरि-भूरि प्रंशसा की। मुख्य अतिथि ने कहा- व्यक्ति जीवन में कई बार पराजित भी होता है लेकिन उसके हार में ही जीत होती है यह उपन्यास व्यक्ति के सामाजिक संघर्ष को इंगित करता है।
उपन्यास के विमोचन के उपरान्त कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया। सरस्वती वन्दना कुमारी गुंजन स्वामी ने की। कवयित्री श्रीमती रेखा गिरीश, कमलेश तन्हा, सरोज दूबे, कवि प्रशान्त दीक्षित, बाल कवयित्री कुमारी गुंजन स्वामी ने अपने काव्यपाठ से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। चरणसिंह स्वामी ने आज की परिस्थितियों पर कविता इस प्रकार सुनाई- हम कितना दर्द लिए फिरते हैं अपने,अपने सीने में, भेद कहाँ अब रहा यहाँ पर मरने में और जीने में। सत्यपाल सत्यम जी ने गीत कुछ यूं पढ़ा-
तेरे शहर में रिमझिम रिमझिम गांव मेरा मरुथल।
जी हमसे रूठ गया बादल।
अन्य प्रमुख गणमान्य लोगों में सहायक आबकारी आयुक्त श्री बजरंग बहादुर सिंह, श्री शिशुपाल सिंह जी, श्रीमती अनीता जी उपस्थित रहे।

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