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शिक्षा को व्यापार न समझें: कमीशन लेकर किताबें बिकवाने वाले स्कूलों पर कार्रवाई हो – प्रशासन से माँग हिसार।

📰 शिक्षा को व्यापार न समझें: कमीशन लेकर किताबें बिकवाने वाले स्कूलों पर कार्रवाई की माँग तेज

रिपोर्टर: हन्नू गोयल
(पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता)
हिसार।
शिक्षा सेवा है या व्यापार? यह सवाल अब फिर से उठ खड़ा हुआ है, क्योंकि निजी स्कूलों द्वारा किताबों की बिक्री में कमीशन लेकर खास दुकानों से ही पुस्तकें खरीदवाने के मामले सामने आने लगे हैं। इससे न सिर्फ अभिभावकों की जेब पर असर पड़ रहा है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

स्थानीय स्तर पर कई अभिभावकों ने आरोप लगाया है कि स्कूल प्रशासन केवल एक विशेष दुकान से ही किताबें लेने का दबाव बना रहा है, जहाँ किताबें एमआरपी से भी अधिक दरों पर बेची जा रही हैं। इतना ही नहीं, पूरा सेट लेने की शर्त लगाई जाती है, जिससे कई किताबें ऐसी भी खरीदनी पड़ती हैं जो न तो आवश्यक होती हैं और न ही कक्षा में पढ़ाई जाती हैं।

सामाजिक संगठनों और अभिभावकों ने प्रशासन से माँग की है कि इस तरह की एकतरफा व्यवस्था की जाँच की जाए और दोषी स्कूलों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएँ। उनका कहना है कि शिक्षा को व्यापार बनाकर यदि स्कूल कमीशन लेकर किताबें बिकवा रहे हैं, तो यह बच्चों और उनके माता-पिता के साथ अन्याय है।

जिला प्रशासन से माँग की गई है कि:

* स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं के बीच वित्तीय लेनदेन की जाँच की जाए,
* किताबें खरीदने की स्वतंत्रता सभी अभिभावकों को दी जाए,
* पुस्तकों की सूची वेबसाइट व सूचना बोर्ड पर सार्वजनिक की जाए,
* और यदि कोई स्कूल अनावश्यक सामग्री खरीदवाने पर ज़ोर दे रहा है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इस व्यवस्था पर समय रहते रोक नहीं लगाई गई, तो शिक्षा का मूल उद्देश्य समाप्त हो जाएगा और केवल मुनाफा केंद्रित सिस्टम हावी हो जाएगा।

हन्नू गोयल ने कहा कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं होती, तो यह मुद्दा व्यापक जन-आंदोलन का रूप ले सकता है।

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