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"जब विवाह व्यापार बन जाए — एक जीवंत सामाजिक सत्य"

"जब विवाह व्यापार बन जाए — एक जीवंत सामाजिक सत्य"
👉 “कहते हैं विवाह दो आत्माओं का मिलन होता है। पर आज... क्या सच में ऐसा है?”
एक सुंदर, सरल और सच्चे स्वभाव वाली लड़की…
जिसे इसलिए नकार दिया गया कि उसका कद कम था, या वो कम पढ़ी-लिखी थी।
पर जिसे स्वीकारा गया, वो थी नौकरी करने वाली, आत्मनिर्भर, और 'कमाऊ' लड़की।
पर कहानी यहीं नहीं रुकी...
जिसने पहले विवाह किया, उससे तलाक का मुकदमा चला दिया गया।
और दूसरी तरफ, नौकरी वाली लड़की से चुपचाप शादी कर ली गई —
नियम, कानून, और नैतिकता सब को ताक पर रख कर।
पहली लड़की के परिवार को समझौते का लालच दिया गया —
“मुकदमा वापस लो… पैसा लो… भूल जाओ…”
और इस तरह,
👉 एक को ठगा गया, दूसरी को इस्तेमाल किया गया।
तो पूछिए खुद से...
क्या ये विवाह है?
या फिर एक साफ़-साफ़ धंधा, जिसमें भावनाओं की कोई कीमत नहीं?
🧠 मूल प्रश्न यह है:
> ❓ "क्या विवाह अब केवल एक सामाजिक लेन-देन बन गया है?"
❓ "क्या रिश्ते अब सौदेबाजी में बदल चुके हैं?"
❓ "क्या आज भी लड़कियों को दिखावे, कमाई, और योग्यता के आधार पर खरीदा-बेचा जा रहा है?"
💡 संदेश:
जब तक समाज विवाह को
– सत्य के बजाय झूठ पर,
– प्रेम के बजाय पैसे पर,
– रिश्तों के बजाय सौदे पर आधारित रखेगा,
तब तक यह फैमिली कोर्ट नहीं, बल्कि बाजार का मामला रहेगा।
🔚 ANPC ट्रस्ट का आह्वान:
> विवाह को फिर से सम्मान, संवाद और सच्चाई की नींव पर खड़ा करने की जरूरत है।
और हर लड़की को इंसान मानने की भी, न कि निवेश या संपत्ति।
संस्थापक डी के पाल 🇮🇳🌹

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