
महान भारतीय युवा सन्यासी. .स्वामी विवेकानंद. ..पुण्यतिथि पर विशेष....
महान राष्ट्रसंत एवं भारतीय संस्कृति के पुरोधा :स्वामी विवेकानंद!
पूण्यतिथि (4 जुलाई) पर विशेष.
"उतिष्ठित जागृत प्राप्यं वरान्निबोधत " अर्थात उठो,जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक कहीं मत रुको,जैसे प्रेरणादायी विचारों के उद्घोषक महान राष्ट्र संत एवं युवा सन्यासी स्वामी विवेकानंद जी का नाम भारतीय मनीषियों में सदैव अग्रगामी रहेगा।
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकत्ता में हुआ था,उनका बचपन का नाम नरेंद्र था वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि, तर्कशील और विलक्षण प्रतिभा से सम्पन्न थे तथा तथा उनकी स्मरणशक्ति असाधारण थी।
विवेकानंद जी का नाम उन महान भारतीय महापुरुषों में अग्रणी है जिन्होंने भारतीय धर्म और संस्कृति की महानता की पताका संपूर्ण विश्व में लहराने का महान कार्य किया।
स्वामी विवेकानंद जी में बचपन से ही अध्यात्म में जिज्ञासा थी और ईश्वर के बारे में जानने के लिए अनेक महापुरुषों के पास अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए जाते रहते थे। परंतु उनकी ज्ञान पिपासा शांत नहीं हो पाती थी। अंततः महान संत स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी, जो दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी थे, के सान्निध्य में जाकर उनकी जिज्ञासा भी शांत हुई और उनका शिष्यत्व पाकर वे नरेंद्र से विवेकानंद हो गए। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी की प्रेरणा से ही विवेकानंद विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए शिकागो की धर्मसंसद में गए।
11 सितम्बर 1893 को शिकागो की धर्मसंसद में भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में उनका संबोधन, "अमेरिका निवासी मेरे भाईयों और बहनों" कहकर विश्व बंधुत्व का शंखनाद करने वाले विवेकानंद जी प्रथम भारतीय धर्मोपदेशक थे।
स्वामी विवेकानंद जी सदैव सर्वधर्म समभाव, नर सेवा नारायण सेवा और नारी शक्ति के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहते थे।
स्वामी जी युवाओं के लिए सदैव प्रेरणा स्रोत रहे हैं, उनकी ओजस्वी और तेजस्वी वाणी तथा ज्ञान और विद्वता से परिपूर्ण विचार सदैव युवा पीढ़ी के ह्रदय में नवचेतना और उत्साह का संचार करती है। प्रतिवर्ष विवेकानंद जी का जन्म दिवस(12जनवरी) राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है, जिसके द्वारा युवाओं में स्वामी जी के प्रेरणादायक विचारों से अवगत करवाया जाता है और स्वामी जी के बताए मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है
स्वामी जी युवाओं से आहवान करते हैं, "वीर बनो, साहसी बनो और संपूर्ण उतरदायित्व अपने कंधों पर लो और सोच लो कि तुम स्वंय अपने भाग्य के निर्माता हो। जो भी बल और सहायता आपको चाहिए वो आपके भीतर ही विद्यमान है हम जो कुछ होना चाहें वो बन सकते हैं यदि हमारा वर्तमान जीवन हमारे पूर्व कर्मों का परिणाम है तो हम निश्चय ही आज के कर्मों के द्वारा अपना भावी रूप बना सकते हैं "।
स्वामी विवेकानंद जी ने सदैव युवाओं को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्पित होकर सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। विवेकानंद जी ने युवाओं को राष्ट्र निर्माण में सदैव अपनी क्षमताओं और सामर्थ्य से जुट जाने का आह्वान करते थे। विवेकानंद युवाओं को सदैव शक्तिसंपन्न और सामर्थ्यवान बनने के लिए प्रेरित करते थे। वे कहते थे हमें लोहे की तरह मांसपेशियां और फौलाद के स्नायु चाहिए।
विवेकानंद ऐसी शिक्षा के पक्षधर थे जो मनुष्य के चरित्र का विकास करे और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके। वो मानव सेवा को ईश्वर सेवा का सर्वोत्तम साधन मानते थे ज्ञान प्राप्ति में मन की एकाग्रता को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं उनका मानना था कि मन संयमित कर लेने से मनुष्य में विलक्षण बौद्धिक क्षमता का विकास संभव है।
वर्तमान समय में युवा पीढ़ी में कई प्रकार की निराशा, नकारात्मकता पनप रही है जिसके कारण वे मानसिक और भावनात्मक रूप से सामर्थ्यहीन हो रहें हैं नकारात्मक विचारों से जीवन भी नकारात्मक और उद्देश्यहीन बन कर रह गया है, उनके लिए स्वामी जी उद्घोष करते हैं," याद रखो, विचार बहुत महत्वपूर्ण होते हैं,हम जो सोचते हैं वहीं हम बन जाते हैं। अतः मस्तिष्क को ऊंचे ऊंचे विचारों और आदर्शों से भर लोगों, इन्हीं विचारों से एक दिन महान कार्य परिलक्षित होंगे"उन्होंने कहा,"अपनी शक्ति को कम करके मत आंखों तुम ब्रह्माण्ड में हलचल मचा सकतें हो"
विवेकानंद जी का दर्शन सिद्धांतों से आगे बढ़ कर व्यवहारिकता की बात करता है वे युवाओं से आह्वान करते हैं कि जीवन में उद्देश्य प्राप्ति के लिए "भागीरथी धैर्य और प्रचंड इच्छाशक्ति चाहिए।अध्यवसायी आत्मा कहती है कि मैं समुद्र को पी जाऊंगी, मेरे सामने पर्वत भी झुक जाएंगे इस प्रकार की इच्छाशक्ति और पराक्रम रखिए और आप लक्ष्य तक अवश्य पहुंचेंगे"
वर्तमान परिस्थितियों में विवेकानंद जी की शिक्षाएं और भी व्यवहारिक व प्रासंगिक हो रही हैं युवा पीढ़ी में हो रहे सामाजिक और नैतिक मूल्यों के ह्रास और शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्बलता के कारण समाज और संस्कृति में आ रहे परिवर्तन से युवा पीढ़ी पथभ्रमित और लक्ष्यहीन जीवन जीने को मजबूर हो रही है। जिसके लिए विवेकानंद जी के दिव्य और ओजस्वी विचारों को आत्मसात करने और जीवन में परिलक्षित करना अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी है, जिससे युवा पीढ़ी को एक सकारात्मक और प्रेरणादायक दिशा प्रदान की जा सकती है।
आज हम सब का दायित्व और नैतिक कर्तव्य है कि हम स्वामी जी के बताए हुए मार्ग पर चलने का संकल्प करें और सभी को प्रेरित करें ताकि युवा पीढ़ी एक स्वस्थ समाज व राष्ट्र के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।
4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की अल्पायु में भारतमाता के संत सपूत ने संसार को अलविदा कह दिया, परंतु अपने पीछे छोड़ ए अपने ज्ञान और राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत महान प्रेरणादायक विचारों की महान विरासत, जो भारतीय संस्कृति और युवा पीढी़ के ह्दय में आज भी हलचल मचाने का कार्य करती है..और युवा ह्दयों को आज भी लक्ष्य प्राप्ति तक अनवरत प्रयास करते रहने को प्रेरित करती है.
आज पुण्यतिथि पर महान राष्ट्र संत को कोटि कोटि नमन!
विक्रम वर्मा
प्रवक्ता अंग्रेजी
शिक्षा खंड गैहरा
चम्बा हिमाचल प्रदेश।