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मैं बस्तर का धान हूँ धरती की कोख से जन्मा, सूरज की तपिश में पका, पानी की बूंद-बूंद से पला... मगर अब... जो भी मुझे बोता है,

मैं बस्तर का धान हूँ
धरती की कोख से जन्मा,
सूरज की तपिश में पका,
पानी की बूंद-बूंद से पला...
मगर अब...
जो भी मुझे बोता है,
साथ में ज़हर भी बोता है,
मिट्टी में जहर, हवा में ज़हर,
और किसान की नीयत में भी... मजबूरी का ज़हर।

मैं पेट भरता हूँ,
पर खुद दम तोड़ता हूँ,
कभी कीटनाशक से, कभी लालच से,
कभी सरकार की खामोशी से...

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