
बिहार में मतदाता पुनर्निरीक्षण
बिहार में इस समय विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है, जिसका प्राथमिक लक्ष्य आगामी चुनावों के लिए एक त्रुटिरहित और अद्यतन मतदाता सूची तैयार करना है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसे भारत निर्वाचन आयोग के सख्त दिशानिर्देशों के तहत निष्पादित किया जा रहा है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी पात्र नागरिक मतदान के अधिकार से वंचित न रहे और कोई भी अपात्र व्यक्ति सूची में शामिल न हो।
नियमित मतदाता सूची पुनरीक्षण के अतिरिक्त,विशेष गहन पुनरीक्षण की पहल तब की जाती है जब चुनाव आयोग को मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर सुधार की आवश्यकता महसूस होती है या जब आगामी चुनाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
युवा मतदाताओं का पंजीकरण: उन युवाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हैं। इन्हें मतदाता सूची में शामिल करना सर्वोच्च प्राथमिकता है।
स्थानांतरित मतदाताओं की पहचान: ऐसे मतदाताओं की पहचान करना जिन्होंने अपना निवास स्थान बदल लिया है, ताकि उन्हें उनके नए पते पर पंजीकृत किया जा सके और पुरानी जगह से उनका नाम हटाया जा सके।
मृत मतदाताओं के नाम हटाना: दिवंगत व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची से हटाना, जिससे फर्जी मतदान की संभावना समाप्त हो सके।
डुप्लीकेट प्रविष्टियों को हटाना: एक ही व्यक्ति के नाम की कई प्रविष्टियों को पहचान कर हटाना, जिससे सूची की सटीकता सुनिश्चित हो।
विवरण में सुधार: मतदाताओं के नाम, पता, जन्मतिथि या अन्य व्यक्तिगत विवरण में मौजूद किसी भी त्रुटि को ठीक करना।
बिहार में चल रहे इस विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य में कई चरण शामिल हैं, जिनमें नागरिकों की सक्रिय भागीदारी महत्वपूर्ण है:
प्रारूप प्रकाशन (Draft Publication): सबसे पहले, मौजूदा मतदाता सूची का एक प्रारूप सार्वजनिक रूप से प्रकाशित किया जाता है। यह सूची बूथ स्तर पर, जिला निर्वाचन कार्यालयों में और राज्य निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर आसानी से उपलब्ध कराई जाती है।
दावे और आपत्तियां प्राप्त करना (Receiving Claims and Objections):यह इस प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। नागरिक मतदाता सूची में अपना नाम शामिल करने के लिए फॉर्म-6,
नाम हटवाने के लिए फॉर्म-7,
विवरण में सुधार के लिए फॉर्म-8 भरकर आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए बूथ स्तर के अधिकारी (BLO), निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (ERO) और सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (AERO) के कार्यालयों में विशेष शिविरों का आयोजन किया जा रहा है,साथ ही ऑनलाइन सुविधा भी उपलब्ध है ।
घर-घर सत्यापन (House-to-House Verification):बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं का भौतिक सत्यापन करते हैं। वे नए मतदाताओं की पहचान करते हैं, मृत या स्थानांतरित मतदाताओं का पता लगाते हैं, और मौजूदा प्रविष्टियों की सटीकता की जांच करते हैं। यह गहन प्रक्रिया मतदाता सूची को अधिक विश्वसनीय बनाने में मदद करती है।
विशेष अभियान तिथियां (Special Campaign Dates): इस अवधि में, कुछ विशेष तिथियां निर्धारित की जाती हैं जिन पर नागरिक अपने संबंधित मतदान केंद्रों पर जाकर अपने दावों और आपत्तियों को सीधे जमा कर सकते हैं और मतदाता सूची में अपना नाम जांच सकते हैं।
दावों और आपत्तियों का निपटारा (Disposal of Claims and Objections): प्राप्त सभी दावों और आपत्तियों की गहन जांच की जाती है और सुनवाई के बाद उनका विधिवत निपटारा किया जाता है।
अंतिम प्रकाशन (Final Publication): सभी सुधारों और परिवर्तनों को शामिल करने के बाद, मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन किया जाता है, जिसका उपयोग आगामी चुनावों में किया जाएगा।
इस विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य में आम नागरिकों की सक्रिय भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि आप बिहार के निवासी हैं और आपकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, तो यह सुनिश्चित करना आपकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है कि आपका नाम मतदाता सूची में सही ढंग से दर्ज हो।
* अपने नजदीकी मतदान केंद्र पर जाकर या ऑनलाइन माध्यम से अपना नाम मतदाता सूची में अवश्य जांचें।
* यदि आपका नाम सूची में नहीं है, तो तुरंत फॉर्म-6 भरकर पंजीकरण के लिए आवेदन करें।
* यदि आपके विवरण में कोई त्रुटि है, तो फॉर्म-8 भरकर सुधार के लिए आवेदन करें।
* यदि आपके परिवार में कोई ऐसा व्यक्ति है जिसका निधन हो गया है या जो कहीं और स्थानांतरित हो गया है, तो उनके नाम को सूची से हटाने के लिए फॉर्म-7 भरने में सहयोग करें।
भारत में मतदाता सूची के संशोधन की प्रक्रिया समय-समय पर विकसित हुई है ताकि इसे अधिक सटीक और समावेशी बनाया जा सके:
1950: मूल रूप से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23 में 1 मार्च को अर्हक तिथि मानते हुए वार्षिक संशोधन का प्रावधान था।
1952: प्रथम आम चुनाव के बाद, चुनाव आयोग ने निर्देश दिया कि 1952 से 1956 तक मतदाता सूचियों के वार्षिक संशोधन में पूरे राज्य क्षेत्र का **1/5 भाग** शामिल होना चाहिए, ताकि प्रत्येक इलाके में दूसरे आम चुनावों से पहले कम से कम एक बार मतदाता सूची का गहन संशोधन हो सके।
1956: चुनाव आयोग ने कुछ क्षेत्रों में हर साल मतदाता सूचियों के गहन संशोधन का निर्देश दिया, जहां मतदाता सूचियों के गलत होने की संभावना थी: (i) शहरी क्षेत्र (ii) अस्थिर श्रमिक आबादी वाले क्षेत्र (iii) ऐसे क्षेत्र जहां जनसंख्या का काफी बड़ा आंदोलन हुआ था।
1957:लोकसभा चुनाव के बाद, चुनाव आयोग ने निर्देश दिया कि अगले तीन वर्षों में से प्रत्येक के दौरान, पूरे राज्य क्षेत्र के **1/3 भाग** की मतदाता सूचियों का गहन संशोधन किया जाएगा, जबकि 1961 के दौरान संशोधन केवल शहरी क्षेत्रों, अस्थिर, प्रवासी आबादी वाले क्षेत्रों और सेवा मतदाताओं में ही गहन होगा।
1960: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में संशोधन के बाद, चुनाव आयोग ने वर्ष के 1 जनवरी से 31 जनवरी के बीच मतदाता सूची के वार्षिक संशोधन का आदेश दिया।
1962:लोकसभा चुनाव के बाद, चुनाव आयोग ने 1963 और 1964 के लिए पर्याप्त 'सारांश संशोधन' का निर्देश दिया। 1965 में देश के 40% हिस्से में फिर से गहन संशोधन किया गया; शेष 60% 1966 में किया गया।
1966 के बाद: प्रत्येक जिले में जिला चुनाव अधिकारी नियुक्त किए गए और 1969-70 और 1975 में सारांश रोल संशोधन किया गया।
1976: आपातकाल (1976) में कोई लोकसभा चुनाव नहीं हुआ; चुनाव आयोग ने सारांश सूची में संशोधन किया।
1983: 1985 के लोकसभा चुनावों से पहले सभी ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों का चरणबद्ध गहन संशोधन किया गया।
1987-88:सभी निर्वाचन क्षेत्रों में गहन संशोधन किया गया; 1989 में विशेष संशोधन हुआ।
1992: 1993 में संक्षिप्त संशोधन के बाद ईपीआईसी कार्ड (EPIC Card - Electoral Photo Identity Card) की शुरुआत के साथ गहन संशोधन का आदेश दिया गया।
1995: गहन संशोधन 1999-2000 में हुआ।
1999: 2000 में कंप्यूटरीकृत मतदाता सूचियों के बीच कोई गहन संशोधन नहीं हुआ।
2002: 20 राज्यों में विशेष गहन संशोधन हुआ; 2003-04 में 7 राज्यों में गहन संशोधन किया गया।
यह पूरी प्रक्रिया न केवल एक सटीक मतदाता सूची तैयार करने में मदद करती है बल्कि एक मजबूत और जीवंत लोकतंत्र की नींव भी रखती है, जिसमें प्रत्येक पात्र नागरिक की आवाज़ गिनी जाती है।
मनीष सिंह
शाहपुर पटोरी
@ManishSingh_PT