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108 श्री कनकनंदीजी श्रीसंघ के सानिध्य में आज योगेंद्र गिरी सागवाड़ा पर शांतिनाथ भगवान् का पंचामृत अभिषेक

क्षमा वीरस्य भूषणम् - आचार्य कनक नंदी गुरुदेव
परतापुर : वैज्ञानिक धर्माचार्य 108 श्री कनकनंदीजी श्रीसंघ के सानिध्य में आज योगेंद्र गिरी सागवाड़ा पर शांतिनाथ भगवान् का पंचामृत अभिषेक तथा शांति धारा के साथ ही ,शांतिनाथ विधान तथा आचार्य कनकनंदी गुरुदेव का पाद प्रक्षालन तथा पूजन कर विश्व कल्याण के लिए महायज्ञ किया गया। इस अवसर पर 108 मुनि श्री सुविज्ञ सागर ,मुनि 108 अध्यात्म नंदी मुनिराज,मुनि 108 सौम्यनंदी मुनिराज , आर्यिका 105 सुवत्सल मति माताजी, क्षुल्लिका 105 भक्ति श्री माताजी ,मंजू दीदी ,ब्रह्मचारी वर्ण भैया, संजय एन दोसी , सुमती विलास पंचोरी, मनीष पंचोरी ,टीना पंचोरी, दीपिका, विजयलक्ष्मी जोड़ावत ,कमल कुमार, निमेष परिवार, निर्मला खोड़निया,ने उपस्थित होकर पुण्य संचय किया। रात्रि में आचार्य श्री की महाआरती तथा भक्ति संध्या होगी तथा कल प्रातः 6:00 बजे योगेंद्र गिरी से भिलूड़ा के लिए विहार होगा। आचार्य श्री कनकनंदी गुरुदेव ने योगेंद्र गिरी से अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में बताया कि आत्मा के घोड़ों का समूह ही धर्म है ,प्रभु का भूषण क्षमा है, शक्तिशाली वीर का भूषण क्षमा है । आचार्य श्री ने लगभग 30-35 वर्ष पूर्व " *क्षमा* *वीरस्य भूषणम्* " पुस्तक लिखी है । स्त्री का भूषण लज्जा होता है ,पाप नहीं करना फैशन व्यसन नहीं करना लज्जा है ,वीरों का भूषण शौर्य है, साधु का भूषण वैराग्य है ,मन का भूषण शुभ विचार है ,हाथ का भूषण दान है ,कंठ का भूषण सत्य है , कर्ण का भूषण शास्त्र श्रवण है ,धन का भूषण दान देना है ,धर्म का भूषण शांति है, विश्व का भूषण शांति है ,हाथ का भूषण त्याग है ,सर का भूषण प्रणाम करना है ,सबका भूषण प्रिय बोलना है। शादी के पहले लड़कियां अलंकार, गहने नहीं पहनती हैं शादी के बाद, बंधन में डालने के बाद अलंकार पहनने लगते हैं, अलंकार बंधन का प्रतीक है ।सनत कुमार चक्रवर्ती बहुत सुंदर थे, कामदेव थे ,उनकी प्रशंसा देव लोग करते हैं ।देव उन्हें देखने के लिए आते हैं ,जब स्नान करते हैं ,तब उन्हें देखते हैं बहुत सुंदर दिखते हैं। देव कहते हैं कि आप बहुत सुंदर हो परंतु चक्रवर्ती कहते हैं कि अभी मैं वस्त्र अलंकार पहनकर अधिक सुंदर दिखूंगा,जब वस्त्र अलंकार पहनकर देव उन्हें देखते हैं तो देवों का मुख मलिन हो जाता है । तब चक्रवर्ती उन्हें पूछते हैं तो देव कहते हैं आप प्राकृतिक रूप से ही बहुत सुंदर दिखते हो ,अलंकार की कोई आवश्यकता नहीं ।अलंकार और सुंदरता कम कर देते हैं ।जिस प्रकार वृक्ष में अधिक फल फूल आने पर वृक्ष झुक जाता है वैसे ही ज्ञान होने पर ज्ञानी विनम्र बनता है ,जहां विकृति है वहां विकार है, भावात्मक भूषण महान भूषण है जिनका भाव पवित्र होता है , निर्मल होता है तो 70 साल का व्यक्ति भी 40 साल का लगता है ।क्योंकि अच्छा हारमोंस का स्राव होता है। भाव पवित्र होने पर मन प्रसन्न रहता है जिनका मन अपवित्र होता है वहां कम उम्र के व्यक्ति भी अधिक उम्र के लगते हैं । जीवों का लक्ष्य शांति प्राप्त करना है ,शांति ही जीव का स्वभाव है । जो प्रिय वचन बोलते हैं ,वह सभी को प्रिय लगते हैं ।जिस प्रकार सुगंधित फूल दुर्गंध नहीं फैलाते ,वैसे ही साधु दुष्ट जीवों के प्रति भी करुणा भाव दया के भाव रखते हैं । जब राजा चामुंडराय सेनापति को उसके मुकुट पर लगी धूल को साफ करने के लिए बोलते हैं ।तब सेनापति मना करते हैं कि यह साधु के चरण रज की धूल है । इसे साफ नहीं करूंगा ,दान देने वाले का निषेध करना ,अन्य को आहार नहीं देना ,ऐसा संकल्प दिलाना घोर पाप है ।निष्प्रही वितरागी गुरु को आहार नहीं देना ,ऐसा नियम आहार लेते हुए साधु दिलाते हैं ,तो वे महावीर भगवान के लघु नंदन नहीं हो सकते ,अनुयाई नहीं हो सकते ,महावीर भगवान् के सिद्धांत का पालन नहीं कर रहे। जियो और जीने दो के सिद्धांत की परिपालन नहीं कर रहे ,जियो और मरने दो के भाव से नियम दिलवा रहे है ।यह साधु तो क्या सम्यक् दृष्टि श्रावक भी ऐसा नहीं कर सकते ,यह महाव्रति को शोभा नहीं देता ,ऐसा नहीं करना चाहिए ,जो सम्यक दृष्टि संपन्न नहीं होते वहां ऐसा असम्यक् कार्य करते हैं ।

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