
जहांगीर का इंसाफ से नेता अनभिज्ञ
शायद आज के नेता एवं रियाया इस शिक्षा से अनभिज्ञ हैं,या जानबूझ कर रियासत को जहन्नुम बनाना चाहता है। न्यायधीश और शहंशाह दोनों गुनाह और इंसाफ की धज्जियां उड़ाते हैं। यदि जहांगीर का इंसाफ सल्तनत में होने लगे तो कोई मानव दुखी नहीं रहेगा।
आज हिन्दू- मुस्लिम के भय दिखा कर सत्ता पर बने रहने का नाटक करता है। हिन्दू धोबिन एवं वजीर और बादशाह मुस्लिम की कहानी सुनाता हूं:-
जहांगीर सल्तनत में एक हिन्दू धोबी की हत्या होती है। धोबिन द्वारा जहांगीर राजा से इंसाफ की आरजू किया जाता है। हत्यारे का पता नहीं, मुजरिम मलका नूरजहां मुजरिम खुद हाजिर दरबार में होती है। नूरजहां द्वारा कसूरवार कबूल करना। जानबूझ कर नहीं निशान चूकने से धोबी का हत्या मेरी तीर से हूई है। धोबिन द्वारा फरियाद कि मल्लिका से अनजान में हत्या हुई है इसलिए फरियाद वापस लती हूं ।
जहांगीर- इंसाफ ! रियाया का फर्ज सभी के लिए एक ही है।तीर कमान धोवन के दिलाकर, फरियादी! जिस तरह मल्लिकाआलम ने अपने तीर से तुम्हारे शौहर को मारकर बेवा बनाया है। मैं हुक्म देता हूं, तुम भी इस तीर से मलिका के पति को विधवा बना दो।
धोबन -अनजान में किये गये गुनाह की इतनी बड़ी सजा मलका को मिल रही है, वही गुनाह मैं जानबूझ कर कैसे कर सकती हूं।
वजीर - जहांपनाह मलका ने धोबिन के पति को मारा है, मगर धोबन मलका के पति को नहीं, सल्तनत बादशाह को मारेगी। बादशाह की अपनी हैसियत नहीं होती।उस पर सारी प्रजा का हक है। फरियाद है कि गैर के गुनाह के लिए हमारे बादशाह को सजा क्यों।
जहांगीर इन्साफ के लिए मैं तख्त छोड़ देने को राजी हूं ;
धोबन - बादशाह पर प्रजा का हक होता है,हक को बादशाह भी नहीं छीन सकता।
प्रजा के सामने राजा सिर झुकाते हैं।