मन की बात – फोटो के साथ
मन की बात – फोटो के साथ
प्रधानमंत्री जी मन की बात करते हैं
हम चुपचाप मन मसोसकर सुनते हैं।
कभी रेडियो से, कभी टीवी पर,
पर हमारी बात कोई नहीं पूछता अख़बार में या किसी समीक्षा में।
पब्लिक सुनती है,
पर बिना मोबाइल, बिना कैमरे,
बिना सेल्फी स्टिक के,
और बिना उस पोस्ट के जिसमें लिखा हो —
"मन की बात सुनते हुए..."
वहीं दूसरी ओर
एक साहब टोपी पहन कर,
तीन और लोगों को पकड़कर,
एक कुर्सी पर रेडियो सजाकर,
पास में झोला रखकर,
दो झंडे टांगकर
चार बार कैमरा घुमाते हैं...
फिर कहते हैं —
"देश की आत्मा से जुड़ रहे हैं!"
मन की बात ख़त्म नहीं होती,
उसकी "रिपोर्टिंग" शुरू होती है —
वॉट्सऐप स्टेटस, इंस्टा स्टोरी,
और लोकल न्यूज़ में बड़ी हेडलाइन:
"फलाने जी ने सुनी मन की बात,
देशभक्ति के नए प्रतिमान रचे!"
जनता की बात?
वो तो बस दीवारों पर चिपके पोस्टर की तरह है,
जिसे देखकर सब गुज़र जाते हैं,
पर पढ़ता कोई नहीं।
और जो सच में मन की बात सुनता है,
वो बोल भी दे,
तो उसकी बात सुनता कौन है?
मन की बात अब संवाद नहीं —
"इवेंट" है,
एक ऐसा इवेंट
जहाँ मन की जगह
कैमरे, पोस्टर और तालियों की आवाज़ होती है।
सुनील गुप्ता