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।। पंचायत चुनाव: वोट की चोट से बदल सकता है गांव का चेहरा!।।

ऑपरेशन ज़मीनी सच

पंचायत चुनाव: वोट की चोट से बदल सकता है गांव का चेहरा!

स्थान: पौड़ी गढ़वाल के दूरस्थ इलाकों से लेकर मैदानों तक इन दिनों पंचायत चुनाव की सरगर्मी हर घर तक पहुंच चुकी है।
मौसम: कभी धूप, कभी बारिश – पर चुनावी चौपालें गर्म हैं।

मुद्दा: क्या गांव के लोग इस बार सच में बदलाव को वोट देंगे या फिर वही जात-पात, जान-पहचान, दबाव और लालच के फेर में फंस जाएंगे?

गांव-गांव घूमकर सामने आई ज़मीनी हकीकत:

ऑपरेशन ज़मीनी सच के तहत हमारी टीम ने कई गांवों में जाकर लोगों से बातचीत की — चौपालों में बैठकर सुना, खेतों में साथ चला, और घरों के बाहर बिछी चटाइयों पर असली राय जानी।

क्या सामने आया?

1. अभी भी ‘अपने आदमी’ को वोट देने की मानसिकता हावी

“अरे वो मेरा रिश्तेदार है।”

"उसके साथ उठना-बैठना है।"

“उसने मेरे घर शादी में मदद की थी।”

“उसके घर से हमें लकड़ी मिली थी...”

इन बयानों ने ये साबित कर दिया कि आज भी वोट नीयत से नहीं, निजता से तय हो रहा है।

2. जातिगत समीकरण सबसे बड़ा deciding factor

कुछ क्षेत्रों में लोग खुले तौर पर कहते दिखे – "हम अपनी बिरादरी को ही वोट देंगे।"

3. विकास की बातें हाशिये पर

जब पूछा गया कि क्या आपने उम्मीदवार से गांव की सड़क, पानी, स्कूल की बात की?
जवाब मिला — “अभी तो देखा ही नहीं, आया ही नहीं!”

पंचायत चुनाव: असल मायनों में लोकतंत्र की जड़

पंचायत सिर्फ एक पद नहीं होता, बल्कि वो सबसे नज़दीकी प्रशासनिक इकाई है जो गांव के घर-घर की ज़िम्मेदारी उठाती है।

गांव में राशन योजना रुकी हो — प्रधान जिम्मेदार।

मनरेगा के पैसे नहीं मिलते — प्रधान जिम्मेदार।

पानी की लाइन टूटी पड़ी है — प्रधान जिम्मेदार।

गाँव मे रोजगार नही मिल रहा है।-प्रधान जिम्मेदार।

लेकिन क्या हम ऐसे व्यक्ति को चुन रहे हैं जो इन समस्याओं की ज़िम्मेदारी उठा पाए?

"सोचिए, क्या हम अपने गांव का वाकई भला चाहते हैं?"

अगर हां, तो फिर वोट से पहले ये 5 सवाल पूछिए:

1. क्या उम्मीदवार समाज के लिए पहले से काम करता आया है?
2. क्या वह सभी के साथ बराबरी का व्यवहार करता है?
3. क्या उसकी छवि साफ-सुथरी है?
4. क्या वो जाति या लालच की राजनीति करता है?
5. क्या वो गांव की असल जरूरतों को समझता है?

ज़मीनी तस्वीरें बोलती हैं

हमने जिन गांवों का दौरा किया, वहां कई दिल दहला देने वाले दृश्य भी देखे:

टूटी सड़कों पर स्कूल जाते बच्चे।

बंद आंगनबाड़ी केंद्र।

सूख चुके नल और सरकारी हैंडपंप।

गलियों सड़को मे सोलर लाइट नही

पर वहीं कुछ गांवों में ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने बदलाव की उम्मीद जगाई — जिन्होंने जाति, परिवार नहीं, योग्यता देखी।

निष्कर्ष: अब भी मौका है…

लोकतंत्र की असली ताकत सिर्फ ईवीएम या मतपेटी में नहीं, मतदाता की समझ में होती है।

“अगर आपने आंखें मूंदी, तो अगला प्रधान भी पांच साल तक आंखें मूंदेगा।”

ऑपरेशन ज़मीनी सच की अपील:

जाति नहीं, नीति चुनो।
रिश्ता नहीं, ज़िम्मेदारी देखो।
चेहरा नहीं, चरित्र परखो।

इस बार सोच-समझकर वोट दो — ताकि अगली बार शिकायत न करनी पड़े।

रिपोर्टर: सहयोगी कमल उनियाल के साथ जय मल चंद्रा
स्थान: बमोली – द्वारीखाल – सुराड़ी – पुल्यासु – ग्वीन - चैलूसैण -देवीखेत -जाखणीखाल – और आसपास के गांव
श्रृंखला: ऑपरेशन ज़मीनी सच
समर्थन: ग्रामीण जन संवाद और स्वतंत्र पत्रकारिता अभियान

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