
हाइटेक सीतापुर की ज़मीनी हकीकत: जलजमाव, गंदगी और सड़क किनारे उजाड़े गए परिवार
"हाइटेक सीतापुर की ज़मीनी हकीकत: जलजमाव, गंदगी और सड़क किनारे उजाड़े गए परिवार
"फोर लाइन वाली सड़कें बनाएंगे", "सीतापुर को स्वच्छ और सुंदर बनाएंगे" – यह वादे विधायक महोदय की जुबान से सार्वजनिक मंचों पर कई-बार सुनाई देते रहे हैं। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है।
शहर के हर कोने से गंदगी, जलजमाव और अव्यवस्था की तस्वीरें सामने आ रही हैं। पुराने बस स्टैंड, हटरी अस्पताल और अस्पताल के सामने की गलियों में हर ओर कूड़े-मलबे का अंबार जमा है। नगर पंचायत द्वारा नालियों की खुदाई कर मलबा तो निकाल दिया गया, लेकिन उसे उठाने का जिम्मा शायद किस्मत पर छोड़ दिया गया है। इससे नालियों की गंदगी अब सड़क पर फैल गई है, और हल्की बारिश में भी सड़कें लबालब भर जा रही हैं।
जल निकासी की कोई व्यवस्था न होने के कारण बरसात का पानी लोगों के घरों तक घुस रहा है, जिससे सामान्य जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। लोगों को कीचड़ और गंदे पानी के बीच से होकर गुज़रना पड़ रहा है, जिससे संक्रमण फैलने की आशंका भी बढ़ गई है।
"सौंदर्यीकरण अभियान" की आड़ में वर्षों से ठेला-खोमचा लगाकर जीविकोपार्जन करने वाले 'ठेला गुमटी परिवारों को भी बलपूर्वक बेदखल कर दिया गया। बरसात के इस विषम समय में जब किसी भी गरीब परिवार को सिर ढकने की जगह की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है, तब इन्हें सड़क से खदेड़ दिया गया। किसी ने नहीं सोचा कि इन परिवारों में छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं और बीमार लोग भी हैं, जिनके पास न तो छत है और न ही रोज़गार बचा।
पूरा सीतापुर आज एक सुनियोजित नगर की बजाय किसी स्लम एरिया जैसा प्रतीत होता है।
शहरवासी पूछते हैं – क्या यही है स्मार्ट सीतापुर का सपना?
जनता आक्रोशित है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं। नगर पंचायत और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता ने एक साधारण सी वर्षा को भी शहर के लिए अभिशाप बना दिया है।
सवाल यह है कि क्या विकास सिर्फ नारों और विज्ञापनों तक सीमित रहेगा?
क्या गरीबों की बेदखली ही 'सुंदर शहर' की परिभाषा है?
क्या साफ-सफाई सिर्फ दिखावे की चीज है?
सीतापुर की जनता आज जवाब मांग रही है – और उन्हें जवाब चाहिए वादा नहीं।
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रिपोर्टर : सुनील गुप्ता