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नाड़ी शोधन का सर्वोत्तम मार्ग चक्रभेदन।



प्राचीन भारतीय योग ग्रन्थों विशेषकर शिवश्वरोदय, हठयोग, स्वर चिंतामणि आदि में बताया गया है कि हमारे शरीर में 72 हजार नाड़ियाँ है जो शरीर में प्राण ऊर्जा का संचार करती है। जब इन नाड़ियों में मल एकत्र हो जाता है तो शरीर के सभी अंगों को आवश्यक प्राण ऊर्जा नहीं मिल पाती है जिससे शरीर रोगी और कमजोर हो जाता है। आध्यात्मिक उन्नति रुक जाती है। हठयोग एवं घटयोग में नाड़ी शोधन सहित अनेक प्रकार के प्राणायाम बताएं गए हैं, जिनके द्वारा नाड़ियों का शोधन किया जाता है। लेकिन हठयोग और घटयोग में जो प्राणायाम बताएं गए हैं, यदि उन्हें विपरीत मौसम या गलत प्रकृति का व्यक्ति अभ्यास कर ले तो लाभ के बजाय हानि हो सकती है। उदाहरण के लिए यदि कफ प्रकृति का़ व्यक्ति शीतली प्राणायाम, सीत्कारी प्राणायाम या चन्द्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास करे तो उसे सर्दी जुकाम खांसी हो सकतें है। उसी प्रकार गर्मी में सूर्यभेदी प्राणायाम करने से पित्त और ब्लडप्रेशर बढ़ सकतें हैं।
आदि योगेश्वर मुनीश्वर शिव मुनि जी द्वारा प्रणीत चक्रभेदन साधना बिलकुल निरापद है, चक्रभेदन साधना के लिए वात, पित्त, कफ प्रकृति या गर्मी-सर्दी के मौसम का विचार नहीं करना पड़ता है। चक्रभेदन साधना बालक, वृद्ध, रोगी, निरोगी सभी के लिए अनुकूल है। चक्रभेदन साधना बहत्तर हजार नाड़ियों को शुद्ध करने के साथ-साथ आत्मसाक्षात्कार करा कर समाधि में स्थित करा देती है। किसी अनुभवी योगाचार्य से सीखी गई चक्रभेदन साधना, लक्ष्य को जल्दी प्राप्त कराती है। यदि चक्रभेदन साधना की क्रिया विधि ठीक नहीं है तो उससे हानि तो नहीं होगी, लेकिन लक्ष्य (आत्मसाक्षात्कार) प्राप्त करने में देरी अवश्य होगी। सादर जय जीव।
योगाचार्य सत्यवीर सिंह मुनि
सुआवाला-धामपुर-बिजनौर

प्राचीन भारतीय योग ग्रन्थों विशेषकर शिवश्वरोदय, हठयोग, स्वर चिंतामणि आदि में बताया गया है कि हमारे शरीर में 72 हजार नाड़ियाँ है जो शरीर में प्राण ऊर्जा का संचार करती है। जब इन नाड़ियों में मल एकत्र हो जाता है तो शरीर के सभी अंगों को आवश्यक प्राण ऊर्जा नहीं मिल पाती है जिससे शरीर रोगी और कमजोर हो जाता है। आध्यात्मिक उन्नति रुक जाती है। हठयोग एवं घटयोग में नाड़ी शोधन सहित अनेक प्रकार के प्राणायाम बताएं गए हैं, जिनके द्वारा नाड़ियों का शोधन किया जाता है। लेकिन हठयोग और घटयोग में जो प्राणायाम बताएं गए हैं, यदि उन्हें विपरीत मौसम या गलत प्रकृति का व्यक्ति अभ्यास कर ले तो लाभ के बजाय हानि हो सकती है। उदाहरण के लिए यदि कफ प्रकृति का़ व्यक्ति शीतली प्राणायाम, सीत्कारी प्राणायाम या चन्द्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास करे तो उसे सर्दी जुकाम खांसी हो सकतें है। उसी प्रकार गर्मी में सूर्यभेदी प्राणायाम करने से पित्त और ब्लडप्रेशर बढ़ सकतें हैं।
आदि योगेश्वर मुनीश्वर शिव मुनि जी द्वारा प्रणीत चक्रभेदन साधना बिलकुल निरापद है, चक्रभेदन साधना के लिए वात, पित्त, कफ प्रकृति या गर्मी-सर्दी के मौसम का विचार नहीं करना पड़ता है। चक्रभेदन साधना बालक, वृद्ध, रोगी, निरोगी सभी के लिए अनुकूल है। चक्रभेदन साधना बहत्तर हजार नाड़ियों को शुद्ध करने के साथ-साथ आत्मसाक्षात्कार करा कर समाधि में स्थित करा देती है। किसी अनुभवी योगाचार्य से सीखी गई चक्रभेदन साधना, लक्ष्य को जल्दी प्राप्त कराती है। यदि चक्रभेदन साधना की क्रिया विधि ठीक नहीं है तो उससे हानि तो नहीं होगी, लेकिन लक्ष्य (आत्मसाक्षात्कार) प्राप्त करने में देरी अवश्य होगी। सादर जय जीव।
योगाचार्य सत्यवीर सिंह मुनि
सुआवाला-धामपुर-बिजनौर

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