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भारत में प्रजातंत्र नहीं राजतंत्र का बोलबाला का असर

सभी दल सभी मजहब और जाति के नेता परिवारवाद में लगे हुए हैं। सभी नेता एक दूसरे को परिवारवाद को मजबूती में लगा है।खाक पति से अरबपति बन रहा है।फिर भी जनता उसी परिवारवाद को नेता मानकर चमचागिरी करता है।एक ऐसा समय आयेगा जाति नहीं रहेगा।नेता जाति और प्रजा जाति और दलाल जाति हो जायेगा। प्रजा की हालत असहनीय कष्ट में रहेगा।
अब जाति पाति से उपर उठकर कर महामानव प्रशांत किशोर बाबू को मौका देना चाहिए। यदि जनता की कसौटी पर खड़ा नहीं उतरा तो पांच वर्ष के बाद बेदखल कर प्रजातंत्र का विकल्प चुना जा सकता है।
रोटी को नहीं पलटने पर जल जाती है वैसे ही सता नहीं बदलने पर राजशाही बन जाता है।
जागेश्वर मोची मधुबनी संवाददाता।

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