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हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला में बिशु मेला टोकरु टिम्बा काली माता मंदिर हाब्बन आरंभ पारंपरिक रिति रिवाजों व प्राचीन परंपराओं के निर्वहन के साथ आरंभ

बिशु मेला टोकरु टिम्बा काली माता मंदिर हाब्बन आरंभ पारंपरिक रिति रिवाजों व प्राचीन परंपराओं के निर्वहन के साथ आरंभ हुआ बिशू मेला संगीत मय डोडा खेल रहेगा मुख्य आकर्षण ।
सराहां 14 जून
उप तहसील पझोता के हाब्बन में आगामी बिशू मेला पारंपारिक रिति रिवाजों व प्राचीन परंपराओं के निर्वहन के साथ इस मेले का शुभारंभ हो गया । क्षेत्र की टोकरु टिम्बा काली माता के नाम पर लगने वाले इस मेले में सबसे माता की पारंपरिक पूजा व भुमि पूजन व देव नगाड़ा के मंदिर परिसर से जुबडी़ यानि मेला मैदान तक ले जाया गया । इस मेले का मुख्य आकर्षण संगीतमय प्राचीन खेल ठोडा रहेगा जिसमें शादी ठोडा दल छमराल शलेच सिरमौर तथा पाशी ठोडा दल जोड़ना शिमला खेल का प्रदर्शन करेंगे । ठोडा खेल को महाभारत काल का खेल माना जाता है । यह मेला पहले दो समुदायों शाठी और पाशी के बीच खेला जाता है , जिसमें पाशी अपने आपको पांडव और शाठी कौरव दल से संबंधित मानते थे। ठोडा विशेष किस्म के तीर कमान से विशेष ड्रेस पहनकर खेला जाता है। ठोडा खेलने के विशेष नियम होते थे ।जिसमें तीर को घुटनों से नीचे ही मारना होता था।घुटनों से ऊपर तीर लगाना फाउल माना जाता है ।
ठोडा दलों के खिलाड़ी पारंपरिक पोशाकें पहनकर पारंपरिक ठोडा नृत्य करते हुए जुबड़ी यानि मेला मैदान में प्रवेश करते हैं । ठोडा खेल को संगीतमय खेल भी कहा जाता है क्योंकि जब तक मेला मैदान में खेल चलता है तब तक पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनें बजती रहती है । दोनों दलों के खिलाड़ी तीर कमान के करतब दिखाते हुए ।ठोडा दल यानि खूंद विपक्षी खिलाड़ी की टांग पर निशाना लगाते हुए शब्दों के बाण भी चलाता है । विपक्षी दल पर निशाना लगने के बाद खूंद यानि खिलाड़ी अपनी विजय का बखान करते हुए पारंपरिक बोलियां शैरो शायरी बोलते हैं।ठोडा दलो का मेला मैदान में आगमन व वापिस जाते समय जो नृत्य व गायन होता है वह सुनने व देखने योग्य होता है । इस मेले में दोनों ठोडा दल का मैदान में पंहुचने पर आयोजकों द्वारा स्वागत किया गया ।

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