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जो कौम शहीदों को भूल जाती हैं, वे न केवल शहीदों के, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों की भी है अपराधी: परमजीत सिंह वीरजी

नई दिल्ली 4 जून (मनप्रीत सिंह खालसा):- सिख धर्म के पवित्र आध्यात्मिक केंद्र हरमंदिर साहिब से सभी के भले के लिए तथा श्री अकाल तख्त साहिब से हमें दीन- दुखियों की रक्षा के लिए सदैव धार्मिक युद्ध लड़ने, हक, सच के पक्ष में और जुल्म के खिलाफ लड़ने का सिद्धांत मिलता है। परमजीत सिंह वीरजी जो की गुरुबाणी रिसर्च फ़ाउण्डेशन के मुखिया और दिल्ली गुरद्वारा कमेटी की धर्म प्रचार विंग के पूर्व मीत चेअरमैंन ने कहा कि इसलिए यह तख्त श्री अकाल जी का तख्त है तथा अकाल की तरह ही अजेयता व विजय का प्रतीक है। श्री अकाल तख्त साहिब से क्रांतिकारी, इंकलाबी सोच निकली है, इसलिए दिल्ली की दुनियावी गद्दी पर बैठे शासक इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। जिसके चलते देश की अहंकारी तानाशाह इंदिरा गांधी ने अपने सेना प्रमुख जनरल वैद्य के नेतृत्व में जून 1984 में लाखों भारतीय सैनिकों के साथ विमानों, टैंकों और तोपों का उपयोग करके श्री हरमंदिर साहिब और श्री अकाल तख्त साहिब के आध्यात्मिक केंद्र सहित 37 अन्य गुरुद्वारों पर हमला किया था। लाखों की संख्या में आक्रमणकारी सैनिकों ने अत्याचारी बनकर हजारों सिखों का कत्लेआम किया, साथ ही श्री अकाल तख्त साहिब को ध्वस्त किया तथा श्री हरमंदिर साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की घोर बेअदबी की, तोशाखाना, सिख संग्रहालय को लूटा गया, सिख संदर्भ पुस्तकालय को जला दिया गया, राष्ट्र और कौम की अमूल्य निधि, सिख इतिहास को लूटा गया। जून 84 का नरसंहार अपने 41वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, जो सिख कौम के घावों को दर्शाता है। 40 वर्ष पूर्व सिख मानसिकता पर लगे घाव आज भी नासूर की तरह गहरे हैं तथा उसी प्रकार वे पीड़ा भी देते हैं तथा मार्ग भी रोशन करते हैं। ये घाव कौम के भविष्य को आकार देने की क्षमता भी रखते हैं। ऐसे घाव कौम के जीवन को उलट-पुलट भी कर देते हैं। 1984 में सिख कौम पर लगे घाव न भरने योग्य हैं, ताकि भावी पीढ़ियां उस युग के सबक तथा दर्द से सुसज्जित हों। समझदार कौम हमेशा घावों के दर्द को दबाते नहीं हैं तथा न ही वे कभी किसी (समझौते) तरीके से बिक्री योग्य माल की तरह घावों को बेचते हैं। आज सिख कौम को भी 1984 के रक्तरंजित पन्नों को पलटकर यहूदियों पर हुए अत्याचारों जैसा सबक सीखना चाहिए। सिखों के दिलों पर किए गए विभिन्न प्रकार के अत्याचार एक संदेश देते हैं, जिस प्रकार यहूदियों ने अपने जख्मों को रोशनी में बदल दिया है। सिखों को भी 1984 के कत्लेआम से मिले गहरे जख्मों को रोशनी में बदलने की जरूरत है। सिख कौम ने हमेशा सिख धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुसार हक, सच्चाई, न्याय और जुल्म के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया है, लेकिन समय-समय पर तानाशाह सरकारों ने "सिख धर्म के सिद्धांतों" को दबाने के लिए अपनी दमनकारी ताकतों के साथ सिख धर्म को नष्ट करने की कोशिश की है। इसीलिए दिल्ली की गद्दी पर बैठे "लखपत, जसपत,के वारिसों"ने अकाल पुरख द्वारा निर्मित श्री हरमंदिर साहिब, श्री अकाल तख्त साहिब पर 1984 में लाखों की संख्या में सैनिकों द्वारा हमला करवाया था। परंतु खालसा पंथ की आन-बान-शान को ऊंचा रखने के लिए समय-समय पर सिख कौम के महान योद्धाओं ने शहीद बाबा दीप सिंह जी, शहीद बाबा गुरबख्श सिंह जी, भाई सुखा सिंह और भाई मेहताब सिंह के वारिस बनकर सिख कौम का सिर सुरक्षित और ऊंचा रखने के लिए कौम की गिरी हुई पगड़ी को अपने सिर पर रखने के लिए तथा श्री हरमंदिर साहिब और मीरी-पीरी के सिद्धांतों के सर्वोच्च श्री अकाल तख्त साहिब के अनादर और सैन्य हमले का प्रतिरोध करने के लिए अकाल पुरख की सेना के वीर सिंहों ने मुंहतोड़ जवाब देने के लिए रणभूमि में जाकर समय के अहंकारी तानाशाहों के सिर सांपों के सिर की तरह तोड़ दिए हैं, जैसे भाई सुखा सिंह, भाई मेहताब सिंह ने श्री हरमंदिर साहिब को अपवित्र करने वाले दुष्टों के सिर काटकर लटका दिए, उसी प्रकार बीसवीं सदी के महान सिखों, कौम के नायकों ने खालसाई जीवन जिया है। दमदमी टकसाल के 40वें प्रमुख अमर शहीद संत बाबा जरनैल सिंह खालसा भिंडरावाले, शहीद भाई अमरीक सिंह, शहीद जनरल सुबेग सिंह, शहीद बाबा थारा सिंह और अन्य अनेक सिखों ने 1984 में भारत सरकार की हमलावर सेना के सिर पर अपना सिर रखकर ऐतिहासिक पृष्ठ रचे हैं। सिख मार्ग पर चलने वाले सिखों ने अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय गुरुद्वारों की अपवित्रता को सहन नहीं किया और शहादत झेली। हमें अपनी आंखें खोलनी चाहिए और अपने सोए हुए मन को जगाकर उन सिखों के विचारों के बारे में सोचना चाहिए जिन्होंने अपनी कौम के गले से गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। आज समूचे सिख समुदाय को ऐसे महान शहीदों के शहीदी दिवस राष्ट्रीय स्तर पर मनाने चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने शहीदों के बलिदानों के बारे में जान सकें और वे भी अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होकर अपने राष्ट्रीय एवं धार्मिक कर्तव्यों का पालन कर सकें। इसके लिए सजग अंतःकरण वाली कौमें अपने शहीदों को सदैव याद रखती है। जो कौम शहीदों को भूल जाती हैं, वे न केवल शहीदों के, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों की भी अपराधी हैं। शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके पदचिन्हों पर चलकर अपने राष्ट्रीय एवं धार्मिक कर्तव्यों का पालन करें और शहीदों के पवित्र सपनों को साकार करें।

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