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अकलंक शोध संस्थान में पांडुलिपि संरक्षण कार्यशाला संपन्न , दिल्ली के विशेषज्ञ ने सिखाए प्राचीन धरोहर संरक्षण के आधुनिक तरीके , प्राचीन धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल

कोटा। हजारों वर्ष पुरानी प्राचीन पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए अकलंक शोध संस्थान कोटा द्वारा संस्थान के स्थापना दिवस के अवसर पर एक विशेष पांडुलिपि संरक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला तलवंडी जैन मंदिर के स्वाध्याय भवन में सुबह 8:30 बजे दीप प्रज्वलन के साथ शुरू हुई। कार्यक्रम में सकल समाज के अध्यक्ष प्रकाश बज, चंदजी टोंग्या, जे.के. जैन, सुरेश हरसोरा,संस्थान के अध्यक्ष पीयूष जैन, जैन मंदिर तलवंडी के अध्यक्ष अशोक पहाड़िया, उमेश अजमेरा, अनिमेष जैन, पंडित कल्याण चंदजी, महिला मंडल की अध्यक्ष निशा वेद, अजय जैन सी.ए., धर्म चंद सी.ए. महावीर जी बाकलीवाल और संजय निर्माण आदि ने भाग लिया।संस्थान के कोषाध्यक्ष ललित गंगवाल ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।

16 साल की सेवा में 5000 से अधिक पांडुलिपियों का संरक्षण
संस्थान के अध्यक्ष पीयूष जैन ने बताया कि अकलंक शोध संस्थान की स्थापना 2009 में श्रुत पंचमी के दिन अकलंक विद्यालय परिसर में की गई थी। पिछले 16 वर्षों में संस्थान ने इतिहास, दर्शन, धर्म, भूगोल, ज्योतिष और आयुर्वेद से संबंधित पांच हजार से अधिक पांडुलिपियों को संरक्षित और संग्रहीत किया है। यह कार्य निरंतर और सतत प्रक्रिया के तहत जारी है।

परंपरागत तरीकों से आधुनिक भंडारण की चुनौती
संस्थान के सचिव ऐश्वर्य जैन ने विस्तार से बताया कि संस्थान के पास संरक्षित पांडुलिपियों को कई रैक और अलमारियों में सुरक्षित रखा गया है। उन्होंने बताया कि पांडुलिपियों को पारंपरिक तरीके से संग्रहीत करने की एक पूरी प्रक्रिया होती है, लेकिन समय के साथ इन्हें अधिक देखभाल और आधुनिक भंडारण तकनीकों की आवश्यकता है।

पारंपरिक औषधियों का उपयोग
दिल्ली से आए विशेषज्ञ सीनियर संरक्षण सलाहकार अमित राणा ने बताया कि शास्त्रों के रख-रखाव के लिए पारंपरिक औषधियों का प्रयोग करना चाहिए। कीड़े-मकोड़े और दीमक से बचाव के लिए छाया में सुखाई हुई नीम की पत्तियां, अजवाइन की पोटलियां और विशेष औषधि मिश्रण का प्रयोग करना चाहिए। इस मिश्रण में कलौंजी (200 ग्राम), घुड़बच (100 ग्राम), दाल चीनी (100 ग्राम), लौंग (25 ग्राम), पीपर (25 ग्राम) और कपूर (7 ग्राम) शामिल है।

संस्थान की समन्वयक ने दी विस्तृत जानकारी
संस्थान की समन्वयक डॉ. संस्कृति जैन ने पांडुलिपि संरक्षण की कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से समझाया। उन्होंने बताया कि इन पांडुलिपियों को संरक्षित करके पारंपरिक लाल कपड़े में लपेटा जाता है। नए भंडारण तरीकों की आवश्यकता है क्योंकि पुराने मंदिरों और स्थानों पर हजारों पांडुलिपियां रखी हैं, जिन्हें केंद्र में लाकर बेहतर संरक्षण की जरूरत है।

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