
आम आदमी और न्यायायिक व्यवस्था ।।
भारत में आम आदमी के लिए न्यायिक व्यवस्था तक पहुंच एक महत्वपूर्ण विषय है. न्यायपालिका का मुख्य उद्देश्य सभी नागरिकों को निष्पक्ष और समय पर न्याय प्रदान करना है, लेकिन व्यवहार में आम आदमी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
आज हमारे यहां की स्थिति ये है कि आम आदमी के लिए न्यायिक व्यवस्था तक पहुंच में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।
कानूनी प्रक्रियाएँ अक्सर महंगी होती हैं, खासकर आम आदमी के लिए वकीलों की फीस, कोर्ट फीस और अन्य संबंधित खर्च आम आदमी के लिए एक बड़ा बोझ बन जाते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है.
दूसरी बात है कि भारतीय न्यायपालिका में मुकदमों का निपटारा होने में बहुत लंबा समय लगता है. "तारीख पे तारीख" की स्थिति आम है, जिससे आम आदमी का समय और ऊर्जा दोनों बर्बाद होते हैं. यह देरी न केवल मानसिक तनाव का कारण बनती है, बल्कि कई बार न्याय की अवधारणा को ही कमजोर कर देती है.
तीसरी बात है कि कानूनी प्रक्रियाएँ और शब्दावली आम आदमी के लिए समझना मुश्किल होती हैं. उन्हें अक्सर कानूनी दांव-पेंच और नियमों की जानकारी नहीं होती, जिससे वे खुद को असहाय महसूस करते हैं ।
कई लोगों को अपने कानूनी अधिकारों और उपलब्ध कानूनी सहायता योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं होती है. यह अज्ञानता उन्हें न्याय से वंचित कर देती है.
क्योंकि न्यायपालिका की अखंडता उच्च मानी जाती है, फिर भी कुछ स्तरों पर भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आती हैं, जिससे आम आदमी का न्यायपालिका पर विश्वास पे आघात पहुंचता है । माई लार्ड कहे जाने वाले की विश्वशनीय कभी कभी सवालों के घेरे में आना ये दुखद है ।
इन चुनौतियों के बावजूद, न्यायपालिका और सरकार द्वारा आम आदमी के लिए न्याय को सुलभ बनाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं , जैसे मुफ्त कानूनी सहायता राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA)और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों (SLSA) के माध्यम से गरीब और वंचित लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाती है. इसमें मुफ्त वकील, कानूनी सलाह और अन्य खर्चों में मदद शामिल है,लोक अदालतें विवादों को मैत्रीपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए एक प्रभावी मंच हैं. ये त्वरित न्याय प्रदान करती हैं और प्रक्रिया सरल व कम खर्चीली होती है जबकि मोबाइल कोर्ट और ग्राम कचहरी जो ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिए काफी मददगार साबित हो रही है, ताकि लोगों को अपने निवास स्थान के करीब न्याय मिल सके.
हालांकि न्यायिक व्यवस्था में सुधार हेतु कुछ और भी व्यवस्था की जा रही है जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR)मध्यस्थता (Mediation) और सुलह (Conciliation) जैसे ADR तंत्रों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो अदालती मुकदमेबाजी के बजाय विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने में मदद करते हैं इसके साथ ही कोर्ट को डिजिटलीकरण से प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और दक्षता आ रही है, ई-कोर्ट परियोजना के तहत मामलों की ऑनलाइन फाइलिंग, सुनवाई और स्थिति की जानकारी उपलब्ध हो रही है, जिससे आम आदमी को सुविधा मिल रही है । सरकार और विभिन्न गैर-सरकारी संगठन लोगों को उनके कानूनी अधिकारों और उपलब्ध सहायता के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चला रहे हैं.
आम आदमी के लिए न्याय सुलभ बनाना एक सतत प्रक्रिया है. उपरोक्त प्रयासों के बावजूद, अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. न्यायिक प्रणाली को और अधिक पारदर्शी, कुशल और सभी के लिए सुलभ बनाने की आवश्यकता है. यह सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आर्थिक या सामाजिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित न रहे, क्योंकि न्याय तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है ।
मनीष सिंह
@ManishSingh_PT
शाहपुर पटोरी