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*विद्यालय समाज के लिए समाज का होता है।* -डॉ सौरभ मालवीय क्षेत्रीय मंत्री विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र।

भारतीय शिक्षा समिति पूर्वी उत्तर प्रदेश काशी प्रांत द्वारा आयोजित प्रधानाचार्य प्रशिक्षण वर्ग के पांचवें दिन बौद्धिक सत्र को सम्बोधित करते हुए डॉ सौरभ मालवीय क्षेत्रीय मंत्री विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र ने कहा कि हमारा विद्यालय शैक्षिक चेतना का केंद्र बने, विद्या भारती ने ऐसा क्यों सोचा? चेतना शब्द जीवन्त शब्द है, जिसमें निरन्तरता है। विद्यालय एक सामाजिक संस्था है। विद्यालय का दर्शन है कि विद्यालय समाज के लिए समाज का होता है।विद्या भारती की अवधारणा है कि बाहर का व्यक्ति बाहर से और विद्यालय का व्यक्ति विद्यालय में रहकर विद्यालय चलाएंगे। बाहर का व्यक्ति , जिसका विद्यालय से कोई लेना-देना नहीं, लेकिन वह करता सब कुछ है।बाहर रहकर ही चिन्ता करेगा कि विद्यालय कैसे चल रहा है। यह व्यवस्था अनोखी है । इसे हमें लम्बे समय तक चलाना है, इसलिए यह व्यवस्था बनाई गई है। यदि ऐसा न होता तो हमारा विद्यालय सामाजिक चेतना का केंद्र नहीं बन पाता। इसका दूसरा हिस्सा जिम्मेदारी का है। इसमें कार्य करने वाला व्यक्ति भी सामाजिक है। इसलिए इसमें कार्य करने वाला कर्मचारी नहीं होता है। यहां कार्य करने वाला धन या वेतन के लिए नहीं अपितु, दायित्व बोध से कार्य करता है। यही दायित्व बोध भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कराया था।
ऐसे श्रेष्ठ कार्य में जो लोग, विचार, संस्था, समूह कार्य कर रहे हैं , वे सभी विद्या भारती के अंग हैं।हमारी शुचिता,विचारशीलताऔर सांस्कृतिक चेतना ही ऐसी पीढ़ियों का सृजन करने में समर्थ है जिसमें राम की भांति जन्मभूमि के प्रति मातृत्व का भाव है।
विद्यालय में छात्र समस्या तब होती है,जब नेतृत्व कमजोर होता है। शिक्षक को छात्र होना चाहिए।जब तक हम दुनिया की टेक्नोलॉजी नहीं जानेंगे, समस्याएं बनी रहेंगी।विद्या भारती की योजना के केन्द्र में विद्यालय से लेकर क्षेत्र तक और क्षेत्र से लेकर विद्यालय तक विद्यालय ही होता है। इसलिए आप विद्या भारती का चेहरा हैं, असली विद्या भारती हैं। विद्यालय है तो विद्या भारती है। अपनी उपलब्धि प्रान्त की, प्रान्त की उपलब्धि क्षेत्र की और क्षेत्र की उपलब्धि, विद्या भारती की उपलब्धि है।आप जितना सुन्दर प्रयोग करेंगे, उतना सुन्दर परिणाम होगा। और जितना सुन्दर परिणाम होगा उतना ही सभी स्वयं को सुखी महसूस करेंगे। यदि विद्यालय कमजोर है तो समाज से सहयोग लेकर विद्यालय खड़ा करें। प्रान्त और क्षेत्र से सहयोग मांगकर विद्यालय का विस्तार करें।आप अनेक विद्यालय खड़ा किए होंगे। इन्हीं गुणों ने आपको प्रान्तीय एवं क्षेत्रीय दायित्व दिलाया है, जिसके कारण आपकी कार्यक्षमता और कौशल में और अधिक वृद्धि हो सके।हम अपने विद्यालय के विकास के लिए अपने क्षेत्र के सौ दो सौ बुद्धिजीवियों को को जोड़ने का कार्य कर सकते हैं। ऐसा भारत,ऐसी संस्कृति,ऐसे विचार हमारे बीच में टिके रहें,यह हमारे प्रधानाचार्यों की प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रधानाचार्य ही मुख्य कर्ताधर्ता एवं हमारे विचारों के केन्द्र बिन्दु हैं। क्षेत्रीय मंत्री का स्वागत एवं सम्मान सरस्वती विद्या मंदिर सीनियर सेकेंडरी स्कूल विवेकानंद नगर सुल्तानपुर के प्रधानाचार्य राकेशमणि त्रिपाठी जी ने किया। इस अवसर पर विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के अध्यक्ष श्री कंचन सिंह जी काशी प्रान्त के प्रदेश निरीक्षक श्रीमान् शेषधर द्विवेदी जी एवं कक्षा अष्टमी से द्वादश तक के विद्यालयों के सभी प्रधानाचार्य उपस्थित रहे।

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