
*छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक गरीब माँ ने अपने बेटे का जन्म प्रमाणपत्र पाने के लिए अपनी भूख बेच दी. सिस्टम की बेरुखी और रिश्वतखोरी की यह सच्चाई रुला देगी.*
रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए आपके अपने सोशल मीडिया एक्टिविस्ट सुशील कुमार त्रिपाठी Aima Media एमा मीडिया जन जन की आवाज से.............
*सच्चाई जो आपको झकझोर देगी।।*
*छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक गरीब माँ ने अपने बेटे का जन्म प्रमाणपत्र पाने के लिए अपनी भूख बेच दी. सिस्टम की बेरुखी और रिश्वतखोरी की यह सच्चाई रुला देगी.*
गरीबी क्या होती है, ये शब्दों में नहीं, अमीषा धनवार जैसी मां की आंखों में दिखता है जो अपने बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र के लिए एक साल तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटती रही, और आखिरकार अपने बेटे की थाली से चावल निकालकर उसे बाजार में बेचना पड़ा, ताकि 500 रुपये रिश्वत देकर प्रमाणपत्र हासिल कर सके. यह घटना न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही, बल्कि सिस्टम में बैठी अमानवीय सोच को भी उजागर करती है.
कागज के एक टुकड़े के लिए 365 दिन का संघर्ष
पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड की रहने वाली अमीषा धनवार को जब अपने बेटे के जन्म प्रमाणपत्र की ज़रूरत पड़ी, तो शुरुआत में उम्मीद थी कि सरकारी सिस्टम मदद करेगा. लेकिन दिन बीते, महीने बदले, और एक साल गुज़र गया कागज़ अब भी अधूरा था. जब आखिरकार सर्टिफिकेट बना, तो उसमें गलतियाँ थीं. उसे ठीक कराने के लिए जब वह बहरी झरिया में तैनात ANM के पास पहुंची, तो जवाब मिला:
“500 रुपये दो, तभी मिलेगा प्रमाणपत्र.”
*गरीबी की थाली से निकला रिश्वत का भाव,,*
अमीषा की आमदनी शून्य है. वह उन लाखों ग्रामीण महिलाओं में से एक है जो सरकारी अनाज वितरण योजना पर निर्भर हैं. लेकिन एक मां के लिए बेटे का भविष्य ही उसका धर्म होता है. इसलिए उसने भूख पर पहरा बैठाया, चावल बेच दिए, ताकि 500 रुपये किसी तरह इकट्ठा कर उस सिस्टर की रिश्वत की माँग पूरी कर सके
ये सिर्फ कागज नहीं… मेरे बेटे का भविष्य है”
किसी भी मां के लिए बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र महज़ दस्तावेज़ नहीं होता. यह बच्चे के अधिकारों की पहली सीढ़ी है—शिक्षा, राशन कार्ड, स्वास्थ्य, पहचान और समाज में अस्तित्व की मान्यता. अमीषा के लिए वह सर्टिफिकेट एक सपने जैसा था, जिसे पाने के लिए उसने अपने हिस्से की भूख भी कुर्बान कर दी.
जब सिस्टम ही सौदेबाज़ हो जाए…
यह घटना सिर्फ एक महिला की नहीं, पूरे तंत्र पर सवाल है. सरकारी योजनाएं यदि एक गरीब मां को अपने बच्चे का निवाला बेचने को मजबूर कर दें, तो यह किसी व्यवस्था की नाकामी नहीं, क्रूरता है. क्या जन सेवा के नाम पर रिश्वत लेना अब सामान्य होता जा रहा है?
क्या प्रशासन जागेगा या अगली अमीषा इंतजार करेगी?
प्रशासन को चाहिए कि वह इस घटना की तत्काल जांच कर, दोषी ANM को सस्पेंड करे और सार्वजनिक रूप से यह संदेश दे कि भविष्य में किसी गरीब को इस तरह अपमानित नहीं होना पड़ेगा.
*(स्वस्थ रहे=सुरक्षित रहे)*