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चौधरी चरण सिंह: एक महान किसान नेता और राजनीतिज्ञ(23 दिसंबर 1902- 29 मई 1987)

चौधरी चरण सिंह: एक महान किसान नेता और राजनीतिज्ञ(23 दिसंबर 1902- 29 मई 1987)




चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति के उन विरले नेताओं में थे, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन किसानों, श्रमिकों और ग्रामीण समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। वे न केवल एक प्रखर वक्ता और सिद्धांतवादी नेता थे, बल्कि प्रशासनिक कुशलता, नीतिगत दृढ़ता और व्यक्तिगत ईमानदारी के लिए भी विख्यात रहे।



जन्म और प्रारंभिक जीवन

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गाँव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही मेहनती और विद्वान प्रवृत्ति के थे। 1923 में उन्होंने विज्ञान विषय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और फिर 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। इसके बाद उन्होंने विधि (लॉ) की शिक्षा ली और गाजियाबाद में वकालत शुरू की।



राजनीतिक जीवन की शुरुआत

1929 में वे मेरठ आ गए और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए। 1937 में उन्हें पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में छपरौली निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित होने का अवसर मिला। इसके बाद 1946, 1952, 1962 और 1967 में भी उन्होंने विधानसभा चुनाव जीते और प्रभावशाली जनप्रतिनिधि के रूप में पहचान बनाई।

स्वतंत्रता से पूर्व 1946 में, उन्हें पंडित गोविंद बल्लभ पंत की अंतरिम सरकार में संसदीय सचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने राजस्व, चिकित्सा, लोक स्वास्थ्य, न्याय और सूचना विभाग में कार्य किया। 1951 में वे उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री बने और बाद में 1954 में डॉ. सम्पूर्णानंद की सरकार में राजस्व और कृषि मंत्री के रूप में अत्यंत सक्रिय भूमिका निभाई।



उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगदान

चौधरी चरण सिंह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, पहली बार 1967 में और फिर 1970 में। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने भूमि सुधारों की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए। उन्होंने "जोत अधिनियम, 1960" को प्रभावी ढंग से लागू किया, जिससे जमींदारी प्रथा को समाप्त करने और भूमि के समान वितरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

उन्होंने "विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939" को भी लागू किया, जिससे ग्रामीण किसानों को साहूकारों के कर्ज से मुक्ति मिली। उनके शासन की नीतियाँ भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध थीं।



भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल

28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री बने। उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) का नेतृत्व किया। यद्यपि उनका प्रधानमंत्री पद पर कार्यकाल बहुत संक्षिप्त—केवल 14 जनवरी 1980 तक रहा, परंतु इस अल्प अवधि में भी उन्होंने कृषि और ग्रामीण विकास पर केंद्रित योजनाओं को प्राथमिकता दी।



लेखन और विचारधारा

चौधरी चरण सिंह केवल राजनेता नहीं, बल्कि एक गहरे चिंतनशील लेखक भी थे। उन्होंने किसानों की समस्याओं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और भूमि सुधारों पर कई मूल्यवान ग्रंथ लिखे। उनके कुछ प्रमुख लेखन हैं:

ज़मींदारी उन्मूलन
भारत की गरीबी और उसका समाधान
किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि
प्रिवेंशन ऑफ डिवीजन ऑफ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम
को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रेड
इन पुस्तकों में उन्होंने भारतीय ग्राम्य समाज की समस्याओं का विश्लेषण कर उनके समाधान प्रस्तुत किए।



सरल जीवन और स्थायी विरासत

चौधरी चरण सिंह का जीवन सादगी, ईमानदारी और समर्पण का प्रतीक था। उन्होंने कभी भी सत्ता या धन के पीछे नहीं भागा और किसानों के अधिकारों की रक्षा को अपना परम कर्तव्य माना।

उनकी स्मृति में भारत में 23 दिसंबर को "किसान दिवस" (Kisan Diwas) के रूप में मनाया जाता है।

चौधरी चरण सिंह का निधन 29 मई 1987 को हुआ, परंतु उनके विचार, नीतियाँ और जनसेवा का भाव आज भी भारतीय राजनीति और समाज को प्रेरणा प्रदान करता है। वे भारत के सबसे प्रभावशाली और श्रद्धेय किसान नेताओं में सदैव स्मरणीय रहेंगे।



“भारत का किसान यदि सशक्त होगा, तो राष्ट्र स्वतः समृद्ध होगा।”
— चौधरी चरण सिंह

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