शायरी "हो तुम बारिश के जैसे"
अगर करे बात तुम्हारी, हो तुम बारिश के जैसे। जब भी हम निकले हाथो में छाता लिये, बारिश कि उम्मीद लिए तो चलाकर ठंडी हवा मन बहला जाते हो। जब भी निकले बेखोफ बे-छाता तो रिम-झिम बोछारो से पूरा बदन भिगोय जाते हो।--असलम बाशा (A. B.)