"फुले" मूवी, समानता, स्वतंत्रता, रूढ़ीवादी प्रवृत्तियों का प्रतिकार है,किसी जाति विशेष का अपमान नहीं है "
" फुले" मूवी महात्मा ज्योतिबा फुले एवं सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है, किन्तु इसमें किसी विशेष धर्म या जाति को अपमानित नहीं किया गया है। मैं जाहिल और गंवार व्यक्तियों की बात नहीं कर रहा हूं, किन्तु विद्वानों को ज्ञात होगा कि जैसे कि झांसी की रानी लक्ष्मी बाई एवं होल्कर महारानी देवी अहिल्या बाई जी ने अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी है, वैसे ही इस फिल्म में महात्मा ज्योतिबा फुले एवं सावित्रीबाई फुले जी ने अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी थी, किन्तु इसमें थोड़ा अंतर है, क्योंकि महात्मा ज्योतिबा फुले एवं सावित्रीबाई फुले ने अपनी पूरी कौम को जागरूक करने के लिए लड़ाई लड़ी, परन्तु महारानी देवी अहिल्या बाई एवं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने राज्य के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी थी न की देश के लिए इसलिए सही तत्वों तक पहुंचने के लिए इतिहास का अध्ययन करना होगा यह उनके लिए है जो अनभिज्ञ हैं, क्योंकि पहले छोटी छोटी रियासतों को राजा अपना देश समझते थे,न की पूरे देश को।अब इसमें कुछ लोगों को बुरा लगेगा, क्योंकि सच्चाई यही है, परन्तु उन लोगों से कहता हूं कि सच्चाई यही है, फिर जो मेरा इसके संबंध में विरोध करेंगे तो हो सकता है मेरे से दुश्मनी निकाल रहे हैं,परन्तु" फुले" मूवी , सामाजिक परिवर्तन की क्रांति है ,जिसे सभी भारतीय समाज को देखना चाहिए । मैं यहां स्पष्ट कर रहा हूं कि मेरा मकसद किसी विशेष जाति धर्म को अपमानित करने का कोई उद्देश्य नहीं है, परन्तु अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने का अधिकार सबके लिए है। यह संघर्ष उनका पूरी दुनिया जान चुकी है।अब भारतीय समाज के उन तथाकथित विशेष जातिवादी मानसिक कुप्रवृत्तियों के लोगों से कहना है , जो इसका विरोध कर रहे हैं, इस मूवी में एक बार भी महात्मा ज्योतिबा फुले ने पलट कर बार नहीं किया, परन्तु सामंतवादी व्यवस्था के लोगों ने उनको इस मूवी में अनेक बार मारा भी है। यह फिल्म एक वैचारिकता की लड़ाई को जन्म देती है,जो पुरानी परम्पराओं को जड़ से खत्म कर देने की ओर अग्रसर करती है, जिसमें सामाजिक समानता, स्वतंत्रता, स्त्री शिक्षा,बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का पुरजोर समर्थन एवं पुरानी घिसी पिटी मान्यताएं (रूढ़िगत कुप्रवृत्तियों) आदि का विरोध दिखाया गया है, जैसे कबीर, रैदास, पंडित राहुल सांकृत्यायन, महावीर प्रसाद द्विवेदी,हजारी प्रसाद द्विवेदी, राजा राममोहन राय, डॉ भीमराव अम्बेडकर, , दयानंद सरस्वती,राममनोहर लोहिया आदि ने किया है, यदि लिखूं तो पेज कम पड़ जाएंगे, इसलिए भारतीय समाज में जो जातिवादी मानसिक कुप्रवृत्तियों के कुछ लोग हैं,वे इस भ्रम को छोड़कर 21 वीं सदी के नये समाज में प्रवेश करें, दबा कुचला समाज उनका स्वागत करने के लिए तैयार है, वरना प्रतिकार तो करेगा, इसमें मुझे भी कोई संदेह नहीं है।